नई दिल्लीः प्रख्यात पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम की जन्मशताब्दी के अवसर पर साहित्य अकादमी तथा पंजाबी अकादमी ने राजधानी दिल्ली में द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया. पंजाबी लेखिका अजित कौर ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की. वक्तव्य सुविख्यात कवि सुरजीत पातर और आरंभिक वक्तव्य पंजाबी परामर्श मंडल की संयोजक वनीता ने दिया. स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि अमृता प्रीतम पंजाबी साहित्य की ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं की बड़ी लेखिका थीं. पंजाब के विभाजन की त्रासदी को उन्होंने बहुत गहराई से महसूस किया और स्वतंत्रता तथा नारी की अस्मिता की स्थापना के लिए निरंतर संघर्षरत रहीं. सुरजीत पातर ने कहा कि अमृता प्रीतम ने ‘रीत’ की जगह ‘प्रीत’ को अहमियत दी. उन्होंने कहा कि अमृता का लेखन औरत की शक्ति का प्रतीक है. अजित कौर ने उनके साथ बिताए अपने बहुमूल्य समय को याद करते हुए कहा, उन्होंने सारा जीवन अपनी शर्तों पर जिया और आकाशवाणी तथा अपनी पत्रिका ‘नागमणि’ के जरिए कई नए लोगों को साहित्य लेखन के लिए प्रेरित किया जो भविष्य में पंजाबी के प्रतिष्ठित साहित्यकार बने. वनीता ने कहा कि वे पंजाब की नहीं बल्कि पूरे देश की आवाज़ बनीं. उन्होंने सभी का दर्द महसूस किया और उसको बेबाकी से प्रस्तुत किया. पंजाबी अकादमी के सचिव गुरभेज सिंह गुराया ने संगोष्ठी के पहले दिन पहले सत्र में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि अमृता प्रीतम ऐसी लेखिका थी, जिन्होंने जिस तरह जिया उसी तरह लिखा और जिस तरह लिखा उसी तरह जिया.
दूसरा सत्र 'अमृता प्रीतम के साहित्य' पर केंद्रित था, उसमें जसविंदर सिंह की अध्यक्षता में धनवंत कौर ने उनकी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ पर केंद्रित अपना वक्तव्य तथा रेणुका सिंह ने उनसे संबंधित कुछ स्मृतियों को साझा किया. अगला सत्र जो कि ‘लेखिकाओं की दृष्टि में अमृता प्रीतम’ विषय पर केंद्रित था की अध्यक्षता मालाश्री लाल ने की तथा निरुपमा दत्त एवं अमिया कुंवर ने उनके लेखकीय व्यक्तित्व का आंकलन किया. कार्यक्रम का संचालन पंजाबी परामर्श मंडल के सदस्य रवि रविंदर ने किया. दूसरे दिन का प्रथम सत्र ‘अमृता प्रीतम के साहित्यिक विचार’ पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता सुरजीत पातर ने की. इस सत्र में कुलवीर ने अमृता प्रीतम के प्रतिरोधी साहित्य, यादविंदर ने रोमांटिक साहित्य, नीतू अरोड़ा ने नारीवादी साहित्य, मनजिंदर सिंह ने उनकी भाषा पर अपने आलेख प्रस्तुत किए. अमृता प्रीतम की स्मृतियों पर केंद्रित अगले सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात कवि मोहनजीत ने की तथा कृपाल कज़ाक, बीबा बलवंत, रेणुका सिंह और अजीत सिंह ने अपनी-अपनी स्मृतियों को साझा किया. समापन सत्र की अध्यक्षता दीपक मनमोहन सिंह ने की और मनमोहन एवं गुरबचन भुल्लर ने क्रमशः समापन वक्तव्य एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में अपनी बात रखी. कार्यक्रम के अंत में पंजाबी अकादमी की उपसचिव हरप्रीत कौर ने धन्यवाद ज्ञापन किया. समापन सत्र का संचालन हरविंदर सिंह ने किया. कार्यक्रम के अंत में साहित्य अकादमी द्वारा अमृता प्रीतम पर निर्मित वृत्तचित्र भी प्रदर्शित किया गया.