नई दिल्लीः प्रभात प्रकाशन ने अपनी लोकप्रिय कहानी शृंखला के तहत 'सुशील कुमार फुल्ल की लोकप्रिय कहानियां' प्रकाशित की हैं. डा सुशीलकुमार फुल्ल ख्यात आलोचक एवं साहित्येतिहास लेखक होने के साथ साथ एक वरिष्ठ कथाकार के रुप में हिन्दी जगत में समादृत हैं. साठ से अधिक पुस्तकों के रचयिता डॉ. फुल्ल के बारह कहानी संग्रह, आठ उपन्यास, पांच बाल उपन्यास, पन्द्रह आलोचनात्मक पुस्तकें तथा बीस से अधिक अन्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी चर्चित कृतियों में कहानी संग्रह- मेमना, ब्रेकडाउन, मेरी आंचलिक कहानियां, जलज़ला, होरी की वापसी, चिड़ियों का चोगा; उपन्यास- कहीं कुछ और ;मिट्टी की गंध, नागफांस, खुलती हुई पांख, उ्ड़ान; और अन्य रचनाओं में विश्व प्रेमाख्यान परम्पराः मलिक मोहम्मद जायसी, हिंदी के सृजनकर्मी, हिंदी के शब्द शिल्पी, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, मुंशी प्रेमचन्द, हिमाचल का हिन्दी साहित्य का इतिहास, हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास –2014 आदि शामिल हैं. इस पुस्तक का परिचय देते हुए प्रभात प्रकाशन ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा है कि कहानी कोई चॉकलेट का टुकड़ा तो नहीं होती कि जिसे जब चाहा जैसा चाहा, साँचे-खाँचे में ढालकर बना लिया, बल्कि कहानी तो वह वैचारिक चिनगारी होती है, जो पाठक के मन में एक चौंध पैदा करती है, उसे एक संवेदनपरक चुभन देती है.

परवर्ती सहज कहानी के प्रतिपादक सुशीलकुमार फुल्ल की कहानियों का फलक बहुत व्यापक है. वास्तव में संग्रह की कहानियां समाज में व्याप्त तनाव की अंतर्धारा की कहानियां हैं, जिनमें निम्नमध्य वर्ग का संघर्ष भी झलकता है और उनकी असहज महत्त्वाकांक्षाएं भी उनके जीवन को बनाती-बिगाड़ती दिखाई देती हैं. समाज के वंचित, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति कहानियों को समसामयिक समस्याओं से जोड़ देती है. स्थितियों को व्यंग्यात्मक धरातल पर इस प्रकार रोचकता से उकेरा गया है कि पाठक कहानी के साथ बहता चला जाता है. कहानियां संश्लिष्ट शैली में लिपटी हुई, छोटे-छोटे सूक्त वाक्यों में गुंथी हुई भावप्रवणता से संपृक्त पात्रों के अंतर्मन में झांकती हैं और जीवन के अवगुंठनों को सहजता से खोलती हैं. कहीं-कहीं कथा संयोजन में क्लिष्ट होते हुए भी ये कहानियां अपनी भाषागत सहजता एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण पाठक को कथ्य से आत्मसात् होने में सहायक सिद्ध होती हैं. वर्तमान समय की सच्चाइयों, बढ़ते तनावों, राजनीतिक लड़ाइयों, व्यावसायिक द्वेषों, नारी-शोषण, वृद्ध प्रताड़ना आदि विषयों के अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी परंतु समाज को व्यथित कर देनेवाली घटनाओं पर आधारित कहानियां समय का दर्पण बनकर उभरी हैं.