वाराणसीः देश के तपते चुनावी मौसम के चलते विश्व पुस्तक दिवस पर भले ही संस्थाओं ने वृहत स्तर पर आयोजन न किए हों, पर सोशल मीडिया और ह्वाट्स एप पर इसे लेकर एक दूसरे को बधाई देने का सिलसिला कल पूरे दिन लगा रहा. खासकर, लेखक, प्रकाशकों और छात्रों से जुड़े समूह में. इसी क्रम में बनारस के कवि केशव शरण ने भी एक कविता लिखी और फेसबुक पर लगा दिया. किताबों से जुड़ी भावना और यथार्थ को अभिव्यक्त करने वाली यह कविता आप भी पढ़ेंः
कविताः किताबें और मैं
मैं किताबें ख़रीदता हूं
उन्हें सजाता हूं
छूता हूं
उनके पन्ने उलटता-पुलटता हूं
देखता हूं
दिखाता हूं
पर उन्हें पढ़ नहीं पाता हूं
पूरा
मेरा दिमाग़ बिखर जाता है
पढ़ते-पढ़ते
हालांकि, मैं जानता हूं
कालजयी लेखकों की
कालजयी किताबें हैं वे
जिन्हें पूरा पढ़ लेने पर
दिमाग़ निखर जाता है
दृष्टि मिलती है
ज़रूर इसके मनोवैज्ञानिक
और जैविक कारण होंगे
पारिवारिक और सामाजिक और व्यावसायिक
वजहें होंगी
लेकिन मैं अपने को माफ़ नहीं कर पाता
और जैसे मैं किताबों से प्यार करता हूं
आधा-अधूरा
जिससे भी प्यार करता हूं
क्या इसी तरह करता हूं आधा-अधूरा
मैं संशय को साफ़ नहीं कर पाता.
– केशव शरण