नई दिल्ली: 'कलिकथा वाया बायपास' जैसे चर्चित उपन्यास की लेखिका व साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कथाकार अलका सरावगी का नया उपन्यास 'कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये' जल्द ही वाणी प्रकाशन से छपकर आने वाला है. यह उपन्यास बांग्लादेश से रातों रात भारत आए प्रवासी कुलभूषण जैन की कहानी है. यह उपन्यास प्रेम प्रसंग, विवाहेतर संबंध और पारिवारिक क्लेश तक की कहानी समेटता है. इतिहास, भूगोल, साहित्य, मनोविज्ञान, संस्कृति, प्रेम, द्वेष, साम्प्रदायिकता, परिवार, समाज- किस्सागोई की लचक, कथानक की मज़बूती से रेखांकित यह कहानी हमें कुछ अटपटे किरदारों से परिचित कराएगी. अपने भीतर बसे झूठे, प्रेमी, रंजिश पालने वाले, चिकल्लस बखानने वाले अलग-अलग किरदार हमें कुलभूषण की दुनिया में यूं ही चलते फिरते मिलेंगे.यह एक साधारण पात्र की असाधारण कहानी है, जो बांग्लादेश से कलकत्ता आकर कैसे बंगाली माहौल में अपने आप को ढालता है, उसको बखूबी दर्शाता है.
लेखिका अलका सरावगी कहती हैं, “डेढ़ चप्पल पहनकर घूमता यह काला दुबला लम्बा शख़्स कौन है? हर बात पर इतना ख़ुश कैसे दिखता है ? कुलभूषण को कुरेदा, तो जैसे इतिहास का विस्फोट हुआ और कथा-गल्प, आख्यान, आपबीती-जगबीती के तार ही तार निकलते गए. रिफ़्यूजी तो आज की दुनिया में भी बनते चले जा रहे हैं. कुलभूषण तो पिछली आधी सदी का उजाड़ा हुआ है. देश, घर, नाम-जाति-गोत्र तक छूट गया उसका, फिर भी कहता है, माँ-बाप का दिया कूलभूषण जैन नाम दर्ज कीजिए.” वाणी प्रकाशन के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी कहते हैं, “स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही हिंदी प्रकाशन के क्षेत्र में जिस स्वातंत्र्योतर चेतना के साथ भारतीय मनीषा के ढेरों आधुनिक विचारों ने लिखना शुरू किया, उनकी रचनात्मक यात्रा का गवाह वाणी प्रकाशन बनता रहा.” वाणी की निदेशक अदिति माहेश्वरी कहती हैं, “अलका सरावगी का नया उपन्यास 'कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये' है, और उसकी पहली पाठक और संपादक यानी मैं, कुछ दिनों और रातों से कुलभूषण की दुनिया में बंद हूं. इस किरदार के आसपास के संसार में कोई दरवाज़ा ताला-निगार नहीं है, लेकिन फिर भी कई तिजोरियों के रहस्य दफ़न हैं इसके पास. कुलभूषण की बातों का सच उतना ही खामोश और पक्का है, जितनी हाथों में लकीरें या आसमान में बादल. एक लाइन ऑफ कंट्रोल, दो देश, तीन भाषाएं, चार से अधिक दशक…कुलभूषण ने सब देखा, जिया, समझा है.“