युवा कवि मुकेश कुमार सिन्हा का पहला काव्य संग्रह ‘तेरा मज़हब क्या है चांद‘ का प्रकाशन अविधा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर से किया गया है। जिसमें 70 कविताएँ संग्रहित है। मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा संचालित हिन्दी पांडुलिपि प्रकाशन अनुदान योजना के तहत चयनित ‘तेरा मज़हब क्या है चांद‘ का प्रकाशन हुआ है। मुकेश सिन्हा की पहचान गया के पेशेवर पत्रकार की रही है। बाद में वे सरकारी नौकरी में चले गए। संप्रति वे नवादा में पदस्थापित हैं। सरकारी नौकरी करते हुए मुकेश ने धीरे धीरे इन कविताओं को रचा है।
‘तेरा मज़हब क्या है चांद‘ में स्त्री का संघर्ष है, तो माउंटेनमैन की पत्नी फगुनिया की याद है। दशरथ का जज्बा है, तो प्राकृतिक वर्णन भी। साम्प्रदायिकता के विरुद्ध कवि का व्यंग्य भी है। ‘चांद’ को प्रतीक मानकर कवि ने सीधे तौर पर साम्प्रदायिकता पर गहरी चोट की है। कवि ने चांद से पूछा हैः-
शोर मचाकर नहीं
चुपके से आना
ऐ चांद
मेरे मुंडेरे पर
पूछूंगा
तेरा धर्म।
प्रकृति के दोहन पर भी कवि ने अपनी कलम चलायी है। निश्चित तौर पर हम विकास की सीढ़ी चढ़ रहे हैं, लेकिन हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने में इंसान पूरी मुस्तैदी के साथ लगा है। शहरों में ऐसा विकास हो रहा है कि मुट्ठी भर धूप के लिए लोग परेशान हैं। कवि ने लिखा-
धूप
मेरे हिस्से की
छिन गयीं
उस
गगनचुम्बी इमारत ने
हथिया ली
मेर हिस्से की धूप
और
छोड़ गयी अंधकार
मेरे जिम्मे!
कवि ने समाज पर भी लिखा है। माँ की बेरुखी पर उन्होंने जबर्दस्त तौर पर कलम चलायी है। ‘उदास मां का जिउतिया’ में पुत्र की बेरुखी और पर्व को लेकर मां के उत्साह का अद्भुत संगम परिलक्षित हो रहा है। सचमुच, पुत्र कपूत हो सकता है, लेकिन माता कभी कुमाता नहीं हो सकती?
वृद्धाश्रम की वो ‘मां’
उपवास में थी
ताकि वंश वृद्धि हो
और हो
औलाद का विकास!
उसी औलाद के लिए
जिसकी बेरुखी से
वो गुजार रही है जीवन
वृद्धाश्रम की इन दीवारों के बीच!
‘अपनी बात’ में मुकेश ने कहा है –‘कविताओं में दर्द है, बेचैनी है, छटपटाहट है। यह दर्द, यह बेचैनी केवल मेरी नहीं है। आप भी पढ़िएगा, तो महसूस कीजिएगा।’ युवा कवि मूल रूप से चेचर (वैशाली) के हैं।अभी हाल ही में 'सामयिक परिवेश' एवं 'अभिषेक प्रकाशन ' के तत्वावधान में कालिदास रंगालय, पटना में प्रेम नाथ खन्ना स्मृति में आयोजित सम्मान समारोह में युवा कवि-लेखक मुकेश कुमार सिन्हा को 21 वीं शताब्दी साहित्य गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जिला प्रशासन, गया द्वारा पितृपक्ष के अवसर पर प्रकाशित तर्पण-2018 में मुकेश संपादक मंडल में शामिल रहे हैं।