रीवा, मध्य प्रदेश साहित्यिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की मध्य प्रदेश इकाई और प्रलेस ने मुंशी प्रेमचंद और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को उनकी जयंती पर पिछले दिनों संयुक्त रूप में बड़ी शिद्दत और अदब के साथ याद किया. इस मौके पर कई साहित्यकारों को बुलाया गया था, खासकर उन्हें जिनका लगाव इस प्रदेश से था. लगभग सभी वक्ताओं ने प्रेमचंद और राष्ट्रकवि के साहित्यिक योगदान पर अपनी बात रखी. पर साहित्यकार और लेखक विजयशंकर चतुर्वेदी ने साहित्यिक अकादमिक चर्चा न करते हुए मुंशी प्रेमचंद की धर्मपत्नी शिवरानी देवी के बहाने जनपक्षधर साहित्य-नायकों की छवि धूमिल करने के सुनियोजित अभियान की ओर ध्यान खींचा. उन्होंने अपनी कही बात को सोशल फोरम पर भी रखा तो कई तरह की प्रतिक्रियाएं आयीं. इस बाबत विजयशंकर चतुर्वेदी से बात हुई तो उनका कहना था कि वर्तमान दौर में हमारे नायकों के निजी जीवन को उठाने की एक खतरनाक प्रवृत्ति उभरी है. हम यह भूल जाते हैं कि हमारे नायक भी इनसान थे और उनकी अपनी मानवीय कमजोरियां हो सकती हैं. पर केवल इतने से उनका योगदान कम तो नहीं हो जाता. हमें अपने साहित्यिक नायकों को उनके कृतित्व से आंकना चाहिए.
रीवा में विश्वविद्यालय मार्ग स्थित महेश शुक्ल संचालित चिल्ड्रेन्स अकादमी परिसर में आयोजित इस गोष्ठी में ख्यातनाम वरिष्ठ कवि-आलोचक डॉ. सेवाराम त्रिपाठी, एपीएस विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं समर्थ कवि डॉ. दिनेश कुशवाह, बघेली के वरिष्ठ कवि अमोल बटरोही, ट्रेड यूनियनिस्ट शिवाला जी, बघेली लोक साहित्य पर काम करने वाले चन्द्रिका चंद्र, रीवा प्रलेस इकाई के अध्यक्ष लालजी गौतम (जिन्होंने पूरे कार्यक्रम का संचालन किया), कथाकार सपना सिंह, सैनिक स्कूल के अध्यापक डॉ. एमके रॉय, पत्रकार ओमप्रकाश मिश्रा, लेखिका वीणा बुंदेला, कवि भृगुनाथ पाण्डे भ्रमर के साथ-साथ विद्यालय के दर्ज़नों शिक्षक-शिक्षिकाएं और सैकड़ों छात्र-छात्राएं पूरे समय उपस्थित रहे. इन लोगों ने सक्रिय भागीदारी भी निभाई. बच्चों ने कहानी पाठ किया और आरंभिक संचालन भी.
इस अवसर पर वक्ता साहित्यकारों ने उम्मीद जताई कि पधारे हुए विद्वज्जनों के सरस और बोधगम्य उद्बोधन विद्यार्थियों को प्रेमचंद और मैथिलीशरण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से जोड़ कर रखेगा और वे भी अपने जीवन में इनके आदर्शों को उतार सकेंगे.