वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में 'मातृभाषा का महत्त्व और भूमिका' विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी हुई. उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मातृभाषा के लिए हुए बांग्लादेश के आंदोलन और शहादत के विस्तृत परिप्रेक्ष्य को देखें तो यह भाषा के लिए हुए उत्सर्ग का आंदोलन था, जिसने दुनिया की आंख खोल दी और भाषा की क्षमता को साबित किया. उन्होंने कहा कि मातृभाषा में होना मनुष्य का अपनी प्रकृति में होना है. मनुष्य का स्मृति लोक और आत्मलोक भाषा में ही प्रकाशित है. बांग्ला विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो व्रतती चक्रवर्ती ने भारत की बहुभाषिकता को उसकी शक्ति बताया.
संगोष्ठी के समापन सत्र की मुख्य अतिथि थीं उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद की हिंदी की पूर्व विभागाध्यक्ष थीं प्रो मणिक्यंबा मणि. उन्होंने भारतीय भाषाओं में निहित सांस्कृतिक एकता के विषय में तेलुगु के संदर्भ से बात की और भारतीयता के सौंदर्य को रेखांकित किया. इस सत्र के अध्यक्ष थे उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो आफताब अहमद अफाकी. अफाकी ने मातृभाषाओं की शक्ति को संस्कृति की शक्ति कहा. आपने कहा कि इनमें ज़िंदगी है. ये स्वाभाविक तो हैं ही हमारी तहजीब का आधार भी हैं. सेमिनार की संयोजिका डॉ सोमा दत्ता और उत्तम गिरि ने संगोष्ठी की रुपरेखा और उपलब्धियों पर बात की. खास बात यह कि संगोष्ठी में प्रो लयलीना भट्ट, प्रो ऋचा कुमार, प्रो रिफत जमाल, डॉ बिंदू, प्रो सुमन जैन, डॉ उर्वशी गहलोत, डॉ नम्रता आर मोहंती, डॉ सीमा दास सहित 40 शोधार्थियों ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए. इस अवसर पर संस्कृत उर्दू बांग्ला और हिंदी भाषा में प्रतिभागियों ने संगीतमय ढंग से गीत प्रस्तुत किए. संचालन प्रो सरोज रानी और डॉ आभा मिश्रा पाठक ने किया.