नई दिल्लीः बात सूफ़ीज़्म और बुद्धिज़्म की हो तो दर्शन, समाज और साहित्य पर तो बात होगी ही, और कई नए आयाम भी खुलेंगे. 'साउथ एशियन फेस्टिवल ऑफ़ सूफ़ीज़्म एंड बुद्धिज़्म' के दौरान भी यही हो रहा. एक से बढ़कर एक वक्ता और उनके वक्तव्य. माधव कौशिक के अनुसार जब -जब समाज विषम स्थितियों और विघटन के कगार पर खड़ा हुआ, तब-तब महापुरुषों ने जन्म लेकर शांति समता, सद्भाव का संदेश देकर मनुष्य की जीवन-पद्धति को बदल दिया. गौतम बुद्ध का जन्म ऐसी ही महत्त्वपूर्ण सुघटना है.एडविन अर्नाल्ड को उद्धृत करते हुए कहा कि उन्होंने बुद्ध को ’लाइट ऑफ एशिया’ कहा था. क्राइस्ट के बाद दुनिया में सबसे अधिक मूर्तियां बुद्ध की हैं. इससे यह साबित होता है कि उनके दर्शन ने कलाओं और जन-जीवन के कितना व्यापक रूप से प्रभावित किया है. उन्होंने स्वतंत्रता के बाद जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री के रूप में दिए गए अभिभाषण की अंतिम पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि जिस देश के नागरिक सांप्रदायिक और संकीर्ण विचारों के होंगे वह देश कभी उन्नति नहीं कर सकता.सूफ़ी संतों की वाणियों को लोग जीवन के संविधान की तरह उपयोग करते हैं. मैं सूफ़ीज़्म को ‘माइट ऑफ एशिया’ कहता हूं. सूफ़ीज़्म और बुद्धिज़्म ने मनुष्य की सोच को सहज और सहिष्णु बनाया. काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के अध्यक्ष मुचकुंद दुबे के अनुसार सूफ़ीज़्म ने संगीत की उस शक्ति का उपयोग किया जिसका सार्थक उपयोग भक्तों और संतों ने किया था.
आशीष नंदी के अनुसार यूरोपीय मध्यकाल अंधकार का युग है जबकि भारतीय सभ्यता के लिए मध्यकाल स्वर्णयुग है. उन्होंने कहा ’स्वयं’ की, ’आत्म’ की, अपने ‘स्व’ की खोज ही सृजनात्मकता और आध्यात्मिकता की उपलब्धि होती है. आज के समय में जो धर्म मनुष्य की आंतरिक ज़रूरत को पूरा करेगा उसी का अनुसरण होगा और वही बचेगा. प्रख्यात दार्शनिक अख़्तरुल वासे ने इस्लाम के ‘तसव्वुफ़’ और सूफ़ीज़्म के विभिन्न सिलसिलों का ज़िक्र करते हुए सूफ़ी संप्रदाय की बारीकियों और जीवन में उनके प्रभावों को व्याख्यायित किया. प्रख्यात विद्वान के.टी.एस. साराव ने ’एप्लिकेशन पार्ट ऑफ़ बुद्धिज़्म इन कंटेम्परेरी टाइम’ विषय पर बीज वक्तव्य दिया. उन्होंने वैश्विक समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया और उनका समाधान सूफ़ीज़्म और बुद्धिज़्म में माना. उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म का मूल सूत्र ही ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ है. यदि मनुष्य में मानवीय मूल्य आ जाते हैं तो विश्व की सभी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा. भारत में अफ़गानिस्तान दूतावास के सांस्कृतिक समन्वयक अजमल अलीमज़ई ने अपने विशेष वक्तव्य में सूफ़ीज़्म और बुद्धिज़्म के उद्भव और विकास का ज़िक्र किया और कहा कि आज यह ज़रूरी हो गया है कि प्राचीन धर्मों, संस्कृति एवं सभ्यताओं के आदर्शों और संदेशों को अपनाया जाए जिससे कि दुनिया शांतिपूर्ण हो सके. आनंद कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज के इस संक्रमण काल में सिर्फ़ ‘ह्यूमिनिज़्म’ की ही ज़रूरत है. कविता-पाठ के सत्र में अफ़गानिस्तान के अहमद जावेद, बाङ्लादेश के अल मामून महबूब आलम, भूटान के चादोर वांगमू और भारत के ए.जे. थॉमस ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं. इस सत्र की अध्यक्षता नेपाल के अभी सुबेदी ने की. इनके अलावा श्रीलंका के सामंथ इलांगकून, अफ़गानिस्तान के अहमद फ़ैयाज़ अमीरी ने अपने आलेख प्रस्तुत किए और अध्यक्षता प्रख्यात कश्मीरी लेखक अज़ीज़ हाजिनी ने की.