नई दिल्लीः भाषाओं को लेकर हमारी स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण भी है और भाग्यशाली भी. क्योंकि एक तरफ जहां हमारे देश में चार हज़ार से ज्यादा भाषाएं एवं बोलियां हैं वहीं कुछ दिनों के अंतराल में कुछ भाषाएं हमारे बीच से गायब होती जा रही हैं. ये विचार साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने भाषा सम्मान अर्पण समारोह के दौरान दिए. साहित्य अकादमी कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य एवं क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और प्रोत्साहन में उल्लेखनीय योगदान करने वाले विद्वानों/लेखकों को भाषा सम्मान प्रदान करती है. इस वर्ष कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य के लिए भाषा सम्मान से पुरस्कृत लेखक हैं – योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' (उत्तरी क्षेत्र), गगनेंद्र नाथ दाश (पूर्वी क्षेत्र), शैलजा शंकर बापट (पश्चिमी क्षेत्र) तथा कोशली-संबलपुरी के लिए प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, हलधर नाग, पाइते भाषा के लिए एच. नेंगसाङ और हरियाणवी के लिए हरिकृष्ण द्विवेदी एवं शमीम शर्मा. चंद्रशेखर कंबार ने ही सम्मानित लेखकों को यह मान प्रदान किया.
कार्यक्रम का समाहार वक्तव्य साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने दिया. उन्होंने कहा कि देश की भाषा विविधता हमारे लिए एक काल पात्र की तरह है जिसमें ज्ञान के हज़ारों पन्ने सुरक्षित हैं. यह वह ज्ञान है जो हमारे पूर्वजों ने सदियों से अपने अनुभव के आधार पर तैयार किया है. स्वागत भाषण में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि अकादमी के लिए हर भाषा महान है और उसको बचाना उसका कार्य. साहित्य अकादमी इन पुरस्कारों के जरिए अलिखित और बातचीत भाषाओं/बोलियों को बचाने का प्रयास कर रही है. भाषा सम्मान प्राप्त करने के बाद पुरस्कृत रचनाकारों ने पाठकों के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए. सभी का मानना था कि नई पीढ़ी को अधिक सजगता से उनका साथ देकर इन भाषाओं को बचाना होगा.