नई दिल्ली: हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण के अभियान हिंदी हैं हम के तहत दो कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। कई भाषा विज्ञानियों की राय है कि हिंदी को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि अन्य भारतीय भाषाओं को भी मजबूत करना होगा। हिंदी दिवस पर भारत की भाषिक एकता और भारत की भाषिक विविधता पर आयोजित इस परिचर्चा में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोशपर हरीश त्रिवेदी, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के पूर्व निदेशक प्रो उदय नारायण सिंह और वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने हिस्सा लिया। चर्चा को आरंभ करते हुए राहुल देव ने भारतीय भाषाओं के लुप्त होने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यूनेस्को ने माना है कि 220 भाषाएं लुप्त हो गईं और 197 भाषाएं लुप्त होने के खतरे से जूझ रही हैं। राहुल देव ने हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों के बढते प्रयोग और विद्यार्थियों के बढ़ते अंग्रेजी मोह को रेखांकित किया। उनका मानना था कि ये हिंदी के लिए बड़ा खतरा है। चर्चा में भाग लेते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हरीश त्रिवेदी ने हिंदी को लेकर बेहद सकारात्मक बातें की। उनका कहना था कि इस वक्त भारतीय भाषाओं के बीच बहुत अधिक सौहार्द है और हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाएं समृद्ध तो हो ही रही हैं, भाषाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ये हिंदी और अन्य भाषाओं के लिए खुशहाली का समय है। प्रो उदय नारायण सिंह ने साफ तौर पर कहा कि हिंदी बनाम अंग्रेजी में उनका विश्वास नहीं है। प्रो सिंह का मानना था कि हिंदी में शब्द संपदा की बढ़ोतरी हुई है। हिंदी ने संस्कृत की ही तरह अपने देश की परंपरा को मानते हुए बहुत सारी भाषाओं की संपदा और ऐश्वर्य को अपने में सम्मलितित किया है। बड़ी भाषाओं का जो लक्ष्ण होता है, उसमें एक स्वीकार करके लेने का एक बड़प्पन आ जाता है। हिंदी में यही बड़प्पन दिखता है। प्रो त्रिवेदी ने इस चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए यह उम्मीद भी जताई कि हिंदी आनेवाले दिनों में साहित्य और कला से निकलकर ज्ञान-विज्ञान की भाषा भी बनेगी।