नई दिल्लीः जमीन से जुड़े यायावर कवि डॉ बलदेव वंशी की स्मृति में एक कार्यक्रम का आयोजन उनके सभी मित्रों ने व्यंग्य यात्रा पत्रिका के बैनर तले राजधानी दिल्ली के हिंदी भवन में किया. इस अवसर पर काफी संख्या में राजधानी दिल्ली व एनसीआर के लेखकों ने शिरकत की. इस मौके पर हिंदी भवन के प्रमुख कार्यकारी अध्यक्ष डॉ गोविंद व्यास ने कहा कि वंशी जी बेहद सरल व सहज व्यक्ति थे. उनकी सभी पुस्तकों के लिए हिंदी भवन के पुस्तकालय में स्थान बनाया जाएगा, ताकि सभी पाठक उनके साहित्य से परिचित हो सकें. कार्यक्रम में डॉ उमा शशि दुर्गा ने संत साहित्य पर आलेख पढ़ा व डॉ बलदेव वंशी के जीवन पर प्रकाश डाला. चर्चित व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि डॉ बलदेव वंशी ने प्रेम के साथ व्यंग्य की भी रचनाओं का सृजन किया है व शुरू से अंत तक व्यंग्ययात्री बने रहे. लोकायत के सम्पादक बलराम ने कहा कि वे इतने सहज थे कि फरीदाबाद से दिल्ली मेरे घर मिलने आ जाते थे. उनका साहित्य भी उनकी मिजाज की तरह फक्कड़ था, जिसमें कबीर के दर्शन होते हैं.
व्यंग्यकार डॉ हरीश नवल ने डॉ बलदेव वंशी को कविता का कबीर और शिक्षा शास्त्री बताते हुए उनके जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर भी प्रकाश डाला. राष्ट्रीय पुस्तक न्यास में हिंदी के सहायक सम्पादक लालित्य ललित ने कहा कि वे सभी को सम्मान देते थे, यही वजह थी कि आरंभिक दिनों में मेरी काव्य यात्रा में उनका मार्ग मुझे सही रास्ते पर ले गया. ललित ने उनसे जुड़े कुछ रोचक प्रसंगों का भी जिक्र करते हुए डॉ बलदेव वंशी के अंदाज में ही एक कविता भी सुनाई. वरिष्ठ ग़ज़लकार बालस्वरूप राही ने भी कहा कि उन जैसा सहज संत आज के जमाने में उपलब्ध नहीं. मेरी पत्नी के काव्य संग्रह पर सम्मति देना उनके बड़ेपन को दर्शाता है. जब आज के माहौल में हर दूसरा रचनाकार एक दूसरे की काट करता है वहीं डॉ बलदेव वंशी हर दूसरे को प्रेरित करते नजर आते हैं. इस मौके पर डॉ बलदेव वंशी के पुत्र सुरेंद्र भसीन ने कुछ कविताएं भी सुनाई. कुछ प्रसंग वीरेंद्र ने भी साझा किये. उनके करीबी मित्र बेनी कृष्ण शर्मा, सम्पादक अंजुरी ने भी अपने दो दशक के अनुभवः बताए. कार्यक्रम का संचालन युवा रचनाकार रणविजय राव ने किया. धन्यवाद ज्ञापन व्यंग्य यात्रा पत्रिका की संयुक्त निदेशक आशा कुंद्रा ने किया.