नई दिल्ली: अयन प्रकाशन मनीष सूद की स्मृति में पिछले साल से साहित्य पर्व आयोजित कर रहा है. इस साल यह आयोजन हिंदी भवन में हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत सौदामिनी वेंकटेश की सुंदर सरस्वती वंदना से हुई. फिर भूपाल सूद ने कार्यक्रम की रूपरेखा और अयन प्रकाशन की उपलब्धियों के साथ अपने बेटे मनीष की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए शुरू किए गए इस सम्मान समारोह के उद्देश्य और अयन प्रकाशन की 1974 से शुरू हुई यात्रा के उतार-चढ़ाव साझा किए. इस साल द्वितीय 'मनु स्मृति' सम्मान तीन भाषाओं के सुप्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. राधेमोहन राय को प्रदान किया गया. प्रो राधेमोहन का पूरा जीवन साहित्य को समर्पित रहा है. साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा. प्रो राधेमोहन राय ने सम्मान स्वीकारते हुए अपने वक्तव्य में मनीष की स्मृतियों को नमन करते हुए अयन प्रकाशन का आभार प्रकट किया और ग़ज़ल से जुड़ी बहुत सी बारीकियों पर प्रकाश डाला. पिछले साल 'मनु स्मृति' सम्मान से विज्ञान व्रत को सम्मानित किया गया था. इस सम्मान के तहत एक नारियल, प्रतीक चिह्न एवं 11,000 रुपए की पुरस्कार राशि दी जाती है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कुंवर बेचैन ने की और मंच पर उपस्थित अतिथियों में डॉ हरीश नवल, लक्ष्मीशंकर वाजपेई, प्रो राधेमोहन राय, प्रणव भारती के नाम उल्लेखनीय हैं.
इस साल एक और नई अनूठी परंपरा स्थापित करते हुए अयन प्रकाशन ने प्रतिवर्ष एक ऐसे प्रकाशक को सम्मानित करने का फैसला किया, जिन्होंने उदीयमान लेखकों को अपने प्रकाशन के माध्यम से साहित्य जगत में प्रविष्ट होने का अवसर प्रदान किया. इस वर्ष इस सम्मान हेतु दिशा प्रकाशन के कर्ताधर्ता मधुदीप गुप्ता को चुना गया. आभार प्रकट करते हुए मधुदीप गुप्ता ने लघुकथा को लेकर एक बेहद सटीक बात कही कि 'लघुकथा लघु हो पर उसमें कथा भी हो.' सम्मान प्रक्रिया के बाद कई पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया, जिनमें वरिष्ठ लेखिका कमल कपूर का उपन्यास 'आखिरी सांस तक', चन्द्रप्रभा सूद की दो पुस्तकों 'मोह-मोह के धागे' काव्य-संग्रह एवं 'सच की पराछाइयां' आलेख, प्रगति गुप्ता के काव्य-संग्रह 'सहेजे हुए अहसास', कवयित्री प्रभा शर्मा के पहले कविता-संग्रह 'बदल गई हूं मैं' और चंद्रप्रभा सूद द्वारा संपादित कविता अभिराम के दो खंडों का लोकार्पण शामिल है. कार्यक्रम के अंत में अयन प्रकाशन द्वारा कविता अभिराम में सम्मिलित तीन कवियों रोनी ईनोफाइल, शिल्पी अग्रवाल व सखी सिंह को प्रमाण-पत्र एवं 1100 रुपए का नकद पुरस्कार दिया गया.