नई दिल्लीः दिल्ली विश्वविद्यालय के क्लस्टर इनोवेशन सेंटर में बिहार स्टडी सर्कल ने 'पलायन की पीड़ापर एक दिवसीय गोष्ठी आयोजित की जिसमें पलायन संबंधी मौजूदा समस्याओं पर चर्चा के साथ ही एक नाटक का मंचन भी हुआ, जिससे बिहार से
एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करने के बाद का दर्द दिखा. बिहार के लोगों का दूसरे राज्यों में पलायन करने के बाद भी हालात नहीं सुधर रहे, इसके अलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के किसानों पर हो रहे हमले के बाद का दर्द किसी से छुपा नहीं है. माइम आर्टिस्ट और एक्टिविस्ट दीपक यात्री ने अपने अभिनय के माध्यम से जहां इस विषय पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया वहीं डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफ़र विक्रम चौधरी द्वारा खींची गई तस्वीरों की प्रदर्शनी भी लगाई गई. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन ने सबसे पहले पलायन की अवधारणा को समझाया. उसके बाद अपनी किताब बिहारी मज़दूरों की पीड़ाके संदर्भ में उन्होंने पंजाब गए बिहारी मज़दूरों के जीवन-संघर्ष पर बात की. गुजरात में जो हो रहा है, उसकी तुलना उन्होंने पंजाब गए बिहारी मज़दूरों से की. उन्होंने कहा कि आज की स्थिति पंजाब की स्थिति से भी बुरी है.

अरविंद मोहन ने यह भी बताया कि कोई व्यक्ति क्यों पलायन करता है. अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति ही लोगों को अपना घर छोड़ने को मजबूर करती है. इसका असर न केवल प्रवास कर रहे आदमी पर पड़ता है, पर उसके घर की औरतों पर भी पड़ता है, क्योंकि घर के साथ-साथ बाहर का काम भी औरतों को करना पड़ता है. इस प्रकार उन्हें अतिरिक्त भार उठाना पड़ता है. उनका कहना था कि आज हमें जो हिंसा दिख रही है, उसमें सरकार का ज़्यादा दोष है. गुजरात में चौदह महीने की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म के बाद हुए दंगे-फ़साद का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे मसलों को सुलझाने की बजाय, पार्टियां इस पर राजनीति करने लगती हैं और केवल आरोप प्रत्यारोप करती हैं. उन्होंने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए, और कहा कि सरकार ज़मीन का सही बंटवारा नहीं कर पा रही है. जिस तरह बिहारीशब्द एक गाली का पर्याय बन गया है, उसी तरह नीतीश कुमार के लिए ज़मीन के मसले पर सवाल-जवाब करना गाली है.किसानों की ज़मीन पर कोई बात नहीं करना चाहता. बिहार में सुविधाओं का कितना अभाव है, यह इससे ही पता चलता है कि हर साल सांप और कुत्ते काटने से भी कई लोग मर जाते हैं. सुविधाएं अगर राज्य में होंगी, तो कोई क्यों अपना घर छोड़कर जाना चाहेगा! किसानों के लिए अपनी ज़मीन अहम है। इसलिए जब तक ज़मीन का ठीक से बंटवारा नहीं होगा, तब तक समस्या सुलझेगी नहीं. संगोष्ठी में राजकमल प्रकाशन की ओर से उनकी किताब बिहारी मज़दूरों की पीड़ाका स्टॉल भी लगाया गया था.