पटना 15 सितंबर। "हिंदी बहुत ही सरल भाषा है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि न्यायालयों में भे हिंदीबका अधिकाधिक प्रयोग हो।साथ ही हिंदी देश की राजकाज की भाषा भी जल्द बने इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।" ये बातें राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मांधाता सिंह ने शुक्रवार को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी दिवस समारोह के उदघाटन में ये बातें कही।
समारोह में चौदह हिंदी साहित्य सेवियों को ' हिंदी सेवी सम्मान' से अलंकृत किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन पिछले एक पखवारा सह पुस्तक मेला भी सम्पन्न हुआ।
इस मौके पर आयोजित "हिंदी कब तक" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने एक विदेशी भाषा के विवशता को अविलंब समाप्त कर हिन्दी को उसके उचित आसन पर प्रतिष्ठित करने की मांग उठी। मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो शशिशेखर तिवारी ने कहा " जब तक पूरा देश हिंदी को अपने मन-प्राण से नहीं जोडता और राष्ट्रीय भावना से नहीं देखता तब तक हिंदी को उसका सही स्थान नहीं मिल पायेगा।"
हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने अपने संबोधन में कहा " यह किसी देश और समाज के लिए शर्म की बात है कि राजकाज के लिए उसकी अपनी भाषा नहीं है। उधार ली गई विदेशी भाषा से वर्षों से काम लिया जा रहा है। यह सिद्ध करता है कि हम अब भी मानसिक रूप से दास हैं।"
हिंदी सेवी सम्मान पाने वालों में प्रमुख लीग थे पूर्व मंत्री व साहित्यकार राम लषण राम 'रमण', नाटककार अशोक प्रियदर्शी, कववित्री कालिंदी त्रिवेदी, रत्ना पुरकायस्थ, दा वीरेंद्र कुमार यादव, दा आरती कुमारी, प्रो अरुण कुमार सिन्हा, दा ओम प्रकाश पांडे, दा रावीन्द्र किशोर सिन्हा, घरश्याम, धनन्जय श्रोत्रिय, शुभचन्द सिन्हा, जयप्रकाश पुजारी और अशोक कुमार सिंह आदि। इन सबों को पुष्पहार, वंदन वस्त्र, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह आदि देकर सबों को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर डॉ कुमार अरुणोदय, डॉ मधु वर्मा, दा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार रखे। संचालन योगेन्द्र मिश्र ने किया।