वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भोजपुरी अध्ययन केंद्र और सेतु प्रकाशन ने संयुक्त-रूप से कवि ज्ञानेंद्रपति के काव्यसंग्रह 'गंगा बीती' का लोकार्पण समारोह भोजपुरी अध्ययन केंद्र सभागार में आयोजित किया. लोकार्पण के बाद पुस्तक परिचर्चा कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी के चर्चित कवि मदन कश्यप ने कहा कि ज्ञानेंद्रपति के 'गंगा-बीती' काव्य संग्रह में सांस्कृतिक इतिहास से चुनौती का स्वर प्रमुख है. भाषा के रचाव और शब्दों के माध्यम से न सिर्फ वे विलक्षण बिम्ब रचते हैं बल्कि कम से कम शब्दों में प्रभावी सौंदर्य पैदा करते हैं. ज्ञानेंद्रपति पहचानी हुई दुनिया की पुनर्पहचान के कवि हैं. इस अवसर पर प्रो. वशिष्ठ अनूप का कहना था कि 'गंगा बीती' में बनारस का एक नया संस्करण देखने को मिलता है. संजय चौबे ने कहा कि ज्ञानेंद्रपति की कविताओं में जीवन का चैलेंज है तो जीवन की जीवंतता भी है.
कवि ज्ञानेंद्रपति इस संग्रह के बारे में बताते हुए कहा कि भूगोल के प्रति मेरी आबद्धता है. एक कवि अपने आसपास को, अपने समय-समाज को अपनी रचनाओं में दर्ज करता है. इस अवसर पर उन्होंने 'नौका विहार' नामक कविता का पाठ भी किया. अतिथियों का स्वागत करते हुए समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि 'गंगा बीती' संग्रह गंगा की आत्मकथा है. यह आत्मकथा कुछ-कुछ भारतेंदु के कुछ आपबीती कुछ जग बीती की तरह है. सेतु प्रकाशन के निदेशक अमिताभ रॉय ने कहा कि यह प्रयास है कि अगर कोई रचनाकार सिर्फ लेखन करके जीवन जीना चाहे तो वह जी सके. हिंदी विभाग के शोध छात्र जगन्नाथ दुबे ने कहा कि 'गंगा बीती' की कविताएं स्पष्ट वर्गीय पक्षधरता की कविताएं हैं. संचालन शोध छात्र दिवाकर तिवारी और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. चंपा सिंह ने दिया. कार्यक्रम में प्रो. बलिराज पांडेय, डॉ. प्रभाकर सिंह, प्रो. मदनलाल, प्रो. मंजुला चतुर्वेदी, प्रो. मृदुला सिन्हा, चिरंजीव चौबे सहित कई लोग मौजूद रहे.