नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार 2021 की घोषणा कर दी है. साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव की विज्ञप्ति के मुताबिक उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार 2021 चंद्रभान ख़याल को उनके कविता-संग्रह 'ताज़ा हवा की ताबिशें' के लिए दिया जाएगा. इस पुस्तक का चयन त्रिसदस्यीय निर्णायक मंडल ने निर्धारित चयन-प्रक्रिया का पालन करते हुए, नियमानुसार निर्णायकों के बहुमत के आधार पर किया है. साहित्य अकादमी पुरस्कार 2021 में उर्दू भाषा के लिए पुरस्कार चयन समिति के निर्णायक मंडल के सदस्य, जिन्होंने पुरस्कार की अनुशंसा की, उनके नाम हैं प्रोफेसर मोहम्मद ज़मां आज़ुर्दा, प्रोफेसर सादिक़ एवं प्रोफेसर तारिक छ्तारी. पुरस्कार के रूप में पुरस्कृत लेखक को दिल्ली में आयोजित एक विशेष समारोह 'साहित्योत्सव' में एक उत्कीर्ण ताम्र फल, शाल और एक लाख रुपए की राशि 11 मार्च, 2022 को दी जाएगी.
याद रहे कि चंद्रभान खयाल का जन्म मप्र के कस्बा बाबई अब माखननगर में 30 अप्रैल 1946 को हुआ था. गरीब व पिछड़े परिवार में जन्मे ख्याल 1966 में दिल्ली आए और इस शहर को अपना कर्मक्षेत्र बनाया. वे उर्दू दैनिक कौमी आवाज में 1981 से 2006 तक विशेष संवाददाता रहे और यहीं से अवकाश प्राप्त किया. फरवरी 2008 से जून 2011 तक वे भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे, जो देश में उर्दू की सर्वोच्च संस्था है. वे दो बार उर्दू अकादमी दिल्ली के सदस्य, उर्दू सलाहकार बोर्ड के संयोजक व कार्यकारिणी सदस्य भी रहे. आपका कविता संग्रह 'शोलों का शजर' 1979 में प्रकाशित हुआ था, जिसने उर्दू के सभी वरिष्ठ लेखकों एवं समालोचकों को आकृष्ट किया. इसके बाद कई कविता संग्रह आए. खयाल को केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले टैगोर लिट्रेचर अवार्ड, दिल्ली उर्दू अकादमी का शायरी अवार्ड, मप्र उर्दू अकादमी का अवार्ड, हिंदी उर्दू संगम संस्था लखनऊ का शायरी अवार्ड और अन्य पुरस्कार मिल चुके हैं. चंद्रभान खयाल द्वारा वर्ष 2002 में लिखा खंड काव्य 'लौलाक' कुवैत, सउदी अरब के स्कूलों में पढ़ाया जाता है. 14 सौ सालों में किसी गैर मुस्लिम द्वारा लिखी गई पहली कविता है, जिसे खाड़ी देशों में यह महत्त्व मिला है. ईरान सरकार द्वारा 'लौलाक' के लिए उन्हें विशिष्ट अवार्ड भी दिया गया है. लौलाक पैगंबर इस्लाम हजरत मोहम्मद के पवित्र जीवन पर आधारित कविता है, जिसे पूरी उर्दू दुनिया में पसंद किया गया. इसे अपनी तर्ज की ऐसी कालजयी व अनूठी रचना करार दिया गया है, जिसकी दूसरी कोई मिसाल उर्दू शायरी में दिखने में नहीं आती है.