नई दिल्लीः संसदीय राजभाषा समिति की संयोजक और सांसद रीता बहुगुणा जोशी की उपस्थिति में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद हिंदी अनुभाग द्वारा वार्षिक राजभाषा सम्मेलन, पुरस्कार वितरण एवं कवि सम्मेलन का आयोजन सी सुब्रह्मण्यम सभागार में हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता भाकृअप के सचिव, महानिदेशक डॉ त्रिलोचन महापात्र ने की. सम्मेलन में हिंदी में सर्वाधिक कामकाज करने वाले कार्मिकों, विभागों को पुरस्कृत किया गया. अपने संबोधन में रीता बहुगुणा जोशी ने कर्मचारियों, अधिकारियों एवं कृषि विज्ञानियों से हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करने का आह्वान किया. इस मौके पर आयोजित सरस कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी रचनाओं से समा बांध दिया. कवयित्री ममता किरण के संचालन में संपन्न इस सम्मेलन में बाल स्वरूप राही, अस्तित्व अंकुर, नरेश शांडिल्य, डॉ ओम निश्चल, डॉ रहमान मुसव्विर, अब्दुल रहमान मंसूर ने हिस्सा लिया.
कवि सम्मेलन का आगाज करते हुए युवा कवि अस्तित्व अंकुर का यह शेर बहुत पसंद किया गया-
यहां से हो के तरक्की गुजरने वाली है
वो रास्ते में जो इक पेड़ था कटा कि नहीं
दोहों के उस्ताद कवि नरेश शांडिल्य ने सुनाया-
छोटा हूं तो क्या हुआ जैसे आंसू एक
सागर जैसा स्वाद है तू चख कर तो देख.
सुधी आलोचक गीतकार डॉ ओम निश्चल ने अपने कुछ गीत सुनाए. उन्होंने दिल्ली के खराब वातावरण में एक खुशनुमा सुबह का आह्वान यह कह कर किया- एक ऐसी सुबह फिर मिले/ धूप गेंदे की मानिंद मिले. मजाहिया शायर अब्दुल रहमान मंसूर ने ग़ज़ल के कुछ अशआर पढ़ने के बाद कुछ हास्य व्यंग्य की चुटीली रचनाएं सुनाईं. डॉ. रहमान मुसव्विर ने अपनी चुनिंदा गजलें सुनाईं और 'मैं छलिया नहीं कि छल जाऊं' शीर्षक से सुपरिचित गीत पढ़ा. उनका यह शेर काफी पंसद किया गया- उसे हम पर तो देते हैं मगर उड़ने नहीं देते/ हमारी बेटी बुलबुल है मगर पिंजरे में रहती है. संचालक कवयित्री ममता किरण ने रोजमर्रा के मुद्दों पर अनेक रचनाएं सुनाईं. उनके सरस संचालन ने धारावाहिता टूटने नहीं दी. गजलगो बालस्वरूप राही ने माहौल में गजलों का रंग उड़ेलते हुए अपनी कई मकबूल गजलें सुनाईं. सम्मेलन में संस्थान के कवियों सीमा बर्मन व डॉ जसवीर सिंह ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की निदेशक, राजभाषा सीमा चोपड़ा ने सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया.