नई दिल्लीः कहानियों की मार्फ़त हम अपने समय के यथार्थ को समझ सकें यह हमारे साहित्य के लिए भी आवश्यक है.  हमें भूलना नहीं चाहिए कि इतिहाकर की तुलना में तमस और झूठा सच जैसे उपन्यास अधिक सच्ची और मानवीय दृष्टि से विभाजन जैसी घटना को समझने में हमारे लिए सहायक हैं. सुप्रसिद्ध कथाकार और 'तद्भव' के सम्पादक अखिलेश ने हिन्दू कालेज में आयोजित रिश्ते-नातेदारी पर व्याख्यान में यह बात कही. उन्होंने कहा कि सामाजिक विज्ञान में भी यह छटपटाहट है कि वे भी साहित्य की सी संवेदना प्राप्त करना चाहते हैं, वे भी आख्यान की रोचकता चाहते हैं, जिससे पाठक उनको रुचि से पढ़ें. उन्होंने आगे कहा कि इतिहास, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में यह तड़प देखी जा रही है कि साहित्य की तरह वैसी ही अंतर्वस्तु और रूप को ग्रहण कर वे अपने समय का सच्चा समाजविज्ञान बनाएं. उन्होंने हिन्दू कालेज में अंतर-अनुशासनिक ढंग से की जा रही शोध परियोजना के उद्घाटन को साहित्य और समाजशास्त्र के जरूरी सहमेल का अनुकरणीय उदाहरण बताया. यह शोध परियोजना हिंदी कहानियों के माध्यम से उत्तर भारतीय समाज में रिश्ते-नातेदारियों के अध्ययन पर आधारित है.  इसके लिए राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक शृंखला 'कहानियाँ रिश्तों की' को आधार बनाया गया है.

अखिलेश ने कहा कि हमें भूलना नहीं चाहिए कि परिवार सामाजिक सच्चाइयों का नाभिक है. उन्होंने कहा कि भारतीय समाज विकास के उस मोड़ पर आ गया है, जहां निर्ममता भले ही दिखाई नहीं दे रही लेकिन वह चेतना पर हावी है. इसके लिए जीवन में बढ़ रहे तकनीक के हस्तक्षेप को उन्होंने जिम्मेदार बताया और कहा कि तकनीक ने जो समय बचाया है, भारतीय समाज में उसका कोई सर्जनात्मक उपयोग नहीं हो रहा है, उलटे संवादहीनता से जीवन में अवसाद बढ़ता जा रहा है. राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि यह शृंखला तैयार करते हुए उनके मन में पाठकों की रुचियां थीं लेकिन इस शृंखला को इस तरह का अकादमिक महत्त्व भी मिल सकता है, यह उनके लिए सचमुच संतोष और गौरव की बात है. महेश्वरी ने कहा कि कहानी शृंखला के उनके विचार को अखिलेश ने व्यापक दृष्टि और स्वरूप प्रदान कर उसे समसामयिक बनाया. उन्होंने कहा कि मनोरंजन के साथ-साथ पाठकों की सुरुचि को विकसित करने में सम्पादक की बड़ी भूमिका है, जो इस शृंखला में देखी जा सकती है. इससे पहले समाजशास्त्र विभाग के डॉ रविनंदन सिंह ने परियोजना की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की. हिंदी विभाग के डॉ पल्लव ने कहानी शृंखला के सम्पादक के रूप में अखिलेश का परिचय दिया और वर्तमान परिदृश्य में उनके सम्पादन के योगदान की चर्चा की. आयोजन में वरिष्ठ अध्यापक डॉ रामेश्वर राय, डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह और बड़ी संख्या में विद्यार्थी-शोधार्थी उपस्थित थे. कार्यक्रम का संयोजन द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी हर्ष उरमलिया ने किया. समाजशास्त्र विभाग की आरुषि शर्मा ने आभार व्यक्त किया.