पटना : शहर की संस्था ' साहित्य परिक्रमा 'तथा 'वरिष्ठ नागरिक साहित्यकार मंच' ,पटना के संयुक्त तत्वावधान में  गोबिंद इंक्लेव अपार्टमेंट, चांदमारी रोड, पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी की अध्यक्षता सुप्रतिष्ठित कवि,गीतकार और कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी तथा संचालन मशहूर  चित्रकार और कवि सिद्धेश्वर ने किया.

गज़लकार प्रेम किरण ने अपने जोशीले अंदाज में इंसान की नाकामियों पर सवाल उठाया-

कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या 

हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या?

कोई मैना है न बुलबुल शाख पर 

बागबां भी हो गए सैय्याद क्या?


मधुरेश शरण ने शाम को अपने इष्ट को लौटाने को कहा – 


शाम की तन्हाइयों में तुम चले आओ

जाओ कहीं दूर मगर लौट के आ जाओ.


डॉ. किशोर सिन्हा ने हसरतों की नई तस्वीर खींची और कहा कि हसरतें हरी घास बन कर उगती है आस पास.


घनश्याम ने कहा कि गुलशन में आजकल सिर्फ ख़ार ही ख़ार दिख रहे हैं –

गुलशन गुलशन खार दिखाई देता है

मौसम कुछ बीमार दिखाई देता है

जाने कैसी हवा चली है जहरीली

जीना अब दुश्वार दिखाई देता है.=

आगजनी, पथराव, धमाके, खूंरेजी

आतंकित घर-बार दिखाई देता है

विध्वंसक हो गई समय की गतिविधियां

संकट में संसार दिखाई देता है.


हास्य कवि विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने दाँव-पेंच की बात की –


दाँव पेंच खूब जानते हो

रात दिन डींग़े हाँकते हो.

सिलचर से पधारे चितरंजन भारती ने पक्षधर होने पर भी लाभ न पाने का दृश्य रखा –

हम साधारण जन

पक्षधर होकर भी क्या मिला?

सुपौल से आये हुए योगेन्द्र हीरा ले अपने मकान की नींव कहाँ पर डालिए, देखिए –

मेरी भी कल्पना थी मकान की

लेकिन नींव ली भावना की कब्र पर.


संचालन कर रहे सिद्धेश्वर ने खुद से सवाल किया –


मंदिर हो, मस्जिद हो, गुरुद्वारा ऐ सिद्धेश

तूने कहीं भी सर को झुकाया नहीं है क्या?


हरेन्द्र सिन्हा ने बरसात में वसंत की बहार ला दी –


तुम क्या मिले हर पल मेरा जीवन्त हो गया

देखो सनम मौसम हसीं वसन्त हो गया

कोई शकुन्तला तो कोई दुष्यंत हो गया.


शायर शुभचन्द्र सिन्हा पर सितम ही सितम हो रहे हैं –


इक तेरे ख्यालों के सितम हैं बेशुमार

उस पर तेरे न आने के बहाने हैं बहुत.

इनके अतिरिक्त विभारानी श्रीवास्तव, लता परासर  और शशिकान्त श्रीवास्तव की कविताएँ भी पसंद की गईं. अंत में गोष्ठी के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी ने पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी की। लगभग तीन घंटे तक चली इस गोष्ठी में साहित्यानुरागी बीना गुप्ता और आशा शरण भी उपस्थित थीं. मधुरेश नारायण ने रचनाकारों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया.