रायपुर: पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह में हिंदी साहित्य और गांधीवाद पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ. इस अवसर पर राज्य के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि महात्मा गांधी के विचार हमारे जीवन का संस्कार हैं. गांधी एक ऐसे समाज सुधारक, लेखक और विचारक थे, जिनकी विचारधारा को भारत सहित विश्व के कई देशों ने आत्मसात किया. उन्होंने अहिंसा परमो धर्म का उपदेश दिया है. गांधी जी ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक सूत्र में बांधने के लिए एक भाषा का प्रयोग किया और वह भाषा हिंदी है. संगोष्ठी में पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि गांधी के विचार सत्य, अहिंसा और सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं. उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा ही लोगों को एक-दूसरे से जोड़ सकती है. हमारे विश्वविद्यालय द्वारा गांधी जी के विचारों पर आधारित कई कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं. पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय द्वारा गांधी जी पर आधारित 17 पीएचडी प्रदान की जा चुकी है. आलोचक राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि गांधी के जीवन में तुलसीदास जी की रचना का प्रभाव रहा है. दिल्ली विश्वविद्यालय के पी. मोहन ने कहा कि गांधी जी ने ग्राम सुराज की बात कही थी. हमारी परम्परा लगभग 10 हजार साल पुरानी है और इस परम्परा के रक्षक यहां के आदिवासी हैं.
'हिंदी साहित्य एवं गांधीवाद' पर आयोजित इस संगोष्ठी के समापन के मौके पर मुख्य अतिथि कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व शिक्षामंत्री सत्यनारायण थे. उन्होंने कहा कि गांधी का साहित्य समाज का साहित्य है. गांधी दर्शन में जीवन मूल्यों का आधार है. गांधी जी की 150वीं जयंती के मौके पर आयोजित इस संगोष्ठी में जो विचार शिक्षाविदों की ओर आए हैं उनके मायने अहम हैं. गांधी के विचारों को आत्मसात कर उसे जीने की कोशिश भी हमें करनी होगी. गांधी को सिर्फ भारतीय आजादी के महानायक के तौर पर ही नहीं, बल्कि भारतीय ग्रामीण समाज के जननायक के रूप में हमें देखना चाहिए. समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कुलपति केएल वर्मा ने कहा कि हमारी कोशिश यह है कि नई पीढ़ी तक गांधी के विचार समग्र रूप में पहुंचे. हिंदी साहित्य ही नहीं, समग्र साहित्य में गांधी की अपनी महत्ता है. विशिष्ट अतिथि कोलकाता के प्रो. अरुण होता थे. उन्होंने कहा कि गांधी हर पीढ़ी के लिए जरूरी हैं. हर स्तर के पाठ्यक्रमों में गांधी को पढ़ने और पढ़ाने की जरूरत है. संगोष्ठी में प्रोफेसर गिरीश पाण्डेय, डॉ. शैल शर्मा, डॉ. सरोज चक्रधर, डॉ. मधुलता बारा, वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर, पूर्व आइएएस सुशील त्रिवेदी, इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र, प्रो. राजेश दुबे, प्रो. स्मिता शर्मा, प्रो. गिरजाशंकर गौतम, साहित्यकार सुधीर शर्मा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, प्राध्यापकगण, शोधार्थी और विद्यार्थी मौजूद थे.