कुबेरनाथ राय ललित निबंध के क्षेत्र के ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य में इस विधा को स्थापित करने में बेहद अग्रणी भूमिका निभाई. कुबेरनाथ राय के एकमात्र कविता संग्रह 'कंथामणि' को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने हिंदी साहित्य की सिर्फ एक विधा 'निबंध' को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया और वह पहचान बनाई जो उन्हें आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की परंपरा में ले जाकर प्रतिष्ठित कर देती है. इसीलिए उनके निबंधों में भारतीय संस्कृति में आर्येतर तत्त्वों का महत्त्व, रामकथा के अनेक प्रसंगों की मौलिक व्याख्या और संस्कृति के साथ इतिहास का नवीनतम बोध स्पष्ट दिखाई देता है. 'प्रिया नीलकंठी', 'गंधमादन', 'रस आखेटक', 'निषाद बाँसुरी', 'विषाद योग', 'माया बीच', 'मन पवन की नौका', 'दृष्टि अभिसार', 'पर्णमुकुट', 'मणिपुतुल के नाम', 'महाकवि की तर्जनी', 'राम कथा : बीज और विस्तार', 'त्रेता का वृहत्साम' आदि उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियां हैं. इतिहास और पुराण का नूतन संदर्भ में प्रयोग कुबेरनाथ राय के निबंधों की विशेषता है.
भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ साहित्यिक ग्रंथ 'रामचरितमानस' और 'महाभारत' में उनकी विशेष रुचि रही है. यही वजह है कि कुबेरनाथ राय का समस्त रचनाकर्म इसी विशिष्ट भारतीयता की संकल्पना की पुष्टि का हिस्सा है. वह खुद अपने समूचे रचना-कर्म को पांच खंडों या दिशाओं में बांटते हैं. पहला भारतीय साहित्य, दूसरा गंगातीरी लोक-जीवन और आर्येतर भारत, तीसरा राम-कथा, चौथा गांधी-दर्शन और पांचवां आधुनिक विश्व- चिंतन की चर्चा. खास बात यह कि कुबेरनाथ राय का पहला ललित निबंध 'हेमन्त की संध्या' धर्मयुग के 15 मार्च, 1964 के अंक में छपा था. बाद में जब उनकी पहली निबंध कृति प्रिया नीलकंठी छपी तो उसमें भी यही पहला निबंध था. अफसोस यह कि हर बीतते दिन के साथ हिंदी साहित्य से जुड़े लोग अपने पूर्वज रचनाकारों के योगदान को उस रूप में याद नहीं कर रहे, जिस रूप में उन्हें करना चाहिए. अपने साहित्यिक कर्म के लिए मूर्तिदेवी पुरस्कार, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार और साहित्य भूषण से सम्मानित होने वाले हिंदीसेवी कुबेरनाथ राय को उनकी पुण्यतिथि पर नमन.