अमृतसर: यह एक लड़की, उसकी कोशिश और समाज की दोहरी मानसिकता को उजागर करने वाली मार्मिक कहानी का मंचन था. पंजाब नाट्यशाला में द थिएटर पर्संस ने नादिरा जहीर बब्बर द्वारा लिखित नाटक 'कंसो' का मंचन किया. नाटक की मुख्य पात्र 'कंसो' की भूमिका अनीता देवगन ने बखूबी निभाई. नाटक की कहानी एक ऐसी स्त्री की कहानी है, जो लोगों के घरों में काम करती है, वह मेहनती है और ईमानदारी की कमाई से जीवन चलाती है. पर इसके चलते उसके जीवन में क्या-क्या उतार-चढ़ाव आते हैं, नाटक में यही दिखाने की कोशिश की गई है. उसके इसी संघर्ष के चित्रण में समाज के कई पात्रों का किरदार उजागर होता है, जो आज के दौर के समाज के खोखलेपन को उजागर करता है. 'कंसो' की गाथा आज के समय में स्त्री -पुरुष के खोखले संबंधों को भी बखूबी उभारती है. 'कंसो' की जिंदगी संदेश देती है कि लड़की की शिक्षा अनिवार्य है, ताकि वह आत्मनिर्भर होकर और समाज में सम्मान प्राप्त कर सके. समाज का आधा हिस्सा है लड़कियां और उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए.

'कंसो' के इस सफल मंचन के अंत में नाटककार जतिंदर बराड़ ने कहा कि कोई महिला मां, बहन, पत्नी, बेटी भर से अधिक एक अधिकारी, वकील, मंत्री, डॉक्टर यहां तक कि सेना की अधिकारी भी बन रही है, बन सकती है. यदि लड़की को खुद को साबित करने का मौका दिया जाए, तो उसके पास खुद को साबित करने की शक्ति की कोई सीमा नहीं है. बावजूद इसके ऐसे में भी उसकी जिंदगी का उद्देश्य अपने पति और उनके परिवार के बोझ को कम करना बताया जाता है. यह एक ऐसी मानसिकता है, जिसके अनुसार लड़कियों को मात्र वस्तु  समझा जाता है और एक नौकर की तरह उसए उसके कर्तव्यों को पूरा करने के लिए कहा जाता है. नाटक 'कंसो' की कहानी में इसी मानसिकता को दिखाया गया है. जब हम लड़कियों के बारे में बात करते हैं, तो वास्तव में हम आबादी के आधे हिस्से के बारे में बात करते हैं. उस आबादी के भी आधे लोग प्रतिभाशाली, शक्तिशाली, कुशल और ऊर्जा से भरे हुए हैं, हालांकि अप्रयुक्त हैं. हर दिशा में लड़कियां अपने साथी, जिन्हें हम लड़के कहते हैं, के बराबर हैं.