नई दिल्लीः एशियन लिटरेरी सोसाइटी के तत्‍वावधान में नवरस 2020 के अंतर्गत 1 जुलाई से 9 जुलाई तक कला साहित्‍य संगीत और विचारों के प्रसार के लिए एक महोत्‍सव का आयोजन किया गया है. इसी क्रम में 2 जुलाई को सायं 7 बजे हिंदी कविता के वाचिक आस्‍वाद को जनता तक पहुंचाने के लिए सुपरिचित कवि, गजलगो लक्ष्‍मी शंकर वाजपेयी एवं गीतकार, समालोचक डॉ ओम निश्‍चल के साथ कविता की एक शाम आयोजित की गई. कार्यक्रम के आरंभ में एशियन लिटरेरी सोसाइटी की प्रशासक अनिता चंद ने दोनों कवियों का परिचय दिया व काव्‍यपाठ की शुरुआत की. लक्ष्‍मीशंकर वाजपेयी ने एक एशियाई कवि के काव्‍यपाठ से शुरुआत की. उसके बाद उन्‍होंने कुछ माहिए सुनाए. माहिया हिंदी का बहुत ही ललित छंद है, जो त्रिपदी जैसा होता है किन्‍तु  इसका प्रभाव बहुत मोहक होता है, जैसे

बस ये ही तरीका है
दिल में रंग भरो
वरना सब फीका है
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जो लोग शिखर पर हैं
काश उन्‍हें देखें
जो नींव के पत्‍थर हैं
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जब उम्र ये पूरी है
अमृत क्‍यों खोजूँ
मरना भी जरूरी है
 
उनके बाद गीतकार, कवि ओम निश्‍चल ने आषाढ़-सावन मौजूदा मौसम को लक्ष्‍य कर कुछ दोहे सुनाए .
पथ अगोरते दिन कटे पथ अगोरते शाम
होठो पर बस तैरता एक तुम्हारा नाम
पुरवाई पंखा झले पछुवा करे सलाम
शोख हवा की आहटें गाती सुबहो शाम.
आंगन आंगन हो रही रंगो की बरसात
कहने के दिन आ गए मन से मन की बात.
आज के कटु यथार्थ और खेती किसानी के बीच पिस रहे किसानों की दुर्दशा पर ओम निश्‍चल ने एक गजल भी सुनाई जिसके अशआर ऐसे हैं-

है टूटी सी झोपड़पट्टी और उजड़ी सी निशानी है
यही एक चीथड़ा सा सुख किसानों की निशानी है
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सुना संसद ने तय की है फसल की फिर नई कीमत
उधर सल्‍फास खा कर फिर मरी कोई जवानी है..
इसके बाद काव्‍यपाठ के इस क्रम को आगे बढ़ाने के लिए लक्ष्‍मीशंकर वाजपेयी ने अपने कुछ दोहे पढ़े और एक ग़ज़ल सुनाई जिसके कुछ अशआर ये थे-

जब भी वीरान सा ख्वाबों का नजर लगता है
कितना दुश्‍वार ये जीवन का सफर लगता है

इक जमाने में बुरा होगा फरेबी होना
आज के दौर में ये एक हुनर लगता है.

अंत में ओम निश्‍चल ने दो ललित गीत सुनाए, कहां से रचती हो ये गीत/ बताओ ओ मेरे मनमीत. और यह गीत जिसके बोल बहुत सराहे गए. तीर्थ कोई पा लिया हमने, जब लिया अँकवार में तुमने. तुम न थे तो जिन्‍दगी कम थी, रोशनी में रोशनी कम थी. लगभग चालीस मिनट के इस कार्यक्रम की खूबसूरती यह थी कि इसे सुनने वालों का एक बड़ा समूह ऐसा था जो आज के संकट काल में अपना समय कविता, कला, छंद व विचारों के साथ बिताना चाहता है. याद रहे कि एशियन लिटरेरी सोसाइटी की स्‍थापना मनोज कृष्‍णन ने साहित्‍य कला व संगीत के प्रसार के लिए किया है.