जयपुर: समानांतर लिटरेचर फेस्भीटिवल में भीष्म साहनी मंच पर गीतकार शैलेन्द्र की रचनाओं पर केंद्रित सत्र का संयोजन यूनुस खान ने किया। प्रतिभागियों में थे इंद्रजीत, नरेश सक्सेना, यादवेंद्र, प्रह्लाद अग्रवाल , प्रदीप और अमला। यादवेंद्र ने कहा कि" हिंदी फिल्मों में साहित्य का समावेश शैलेन्द्र ने किया। पहले लोग फिल्मों पर बात करने वालों को हल्का समझते थे। शैलेन्द्र व साहिर ऐसे दो गीतकार थे जिन्होंने बदलते भारत व आज़ादी के बाद के मोहभंग को अपने गीतों में ढाला' । प्रह्लाद अग्रवाल ने शैलेंद्र की रुमानियत पर बात रखते हुए कहा " शैलेंद्र का मामला मुहब्बत का मामला था। कैफ़ी, साहिर जितनी शोहरत शैलेन्द्र को नहीं मिली लेकिन शैलेन्द्र रोटी के साथ रुमानियत को जोड़ देते हैं। रोमांस को शैलेन्द्र ने गीतों में लाया।
शैलेन्द्र की पुत्री अमला ने कहा " जब ये गाने बने तब हम बहुत छोटे थे। हमें उनका इल्म भी न था कि वे कितने बड़े आदमी हैं। मैंने बाबा के गीतों से प्रेरणा ली। " शैलेन्द्र पर पुस्तक लिखने वाले इंद्रजीत ने कहा " शैलेन्द्र का लिखा गाना आवारा हूँ हमारी सांस्कृतिक पहचान बन गया है। रूस में जब मनमोहन सिंह पुतिन से मिल रहे थे तब पृष्ठभूमि में आवारा हूँ बज रहा था। शैलेन्द्र ने लगभग आठ सौ गाने लिखे । शैलेन्द्र के गीत इश्क व इंकलाब के गीत थे। ये बीसवीं सदी की कितनी बड़ी बात है कि एक कवि की एक पंक्ति मज़दूरों-कामगारों की ज़ुबान पर आ जाय। राजकपूर भे हिम्मत नहीं करते थे कि शैलेन्द्र जे गीतों में तब्दीली कर सकें। वे मास व क्लास दोनों के कवि हैं।"
नरेश सक्सेना ने अपनी टिप्पणी में कहा " शैलेन्द्र खुद ही मज़दूर थे इसलिए उनके गानों में दुनिया की बात की शैलेन्द्र । लंबी धुनों ओर भी शैलेन्द्र ही गाना लिख सकते थे। "