सुभाष शर्मा ने हिन्दी में कथा लेखन के साथ विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर गंभीरता से काम किया है। बाल श्रम, महिलाअधिकार, पर्यावरण, प्राथमिक शिक्षा,कृषि,संस्कृति,इतिहास जैसे विषयों पर उनका विपुल लेखन हिन्दी में संदर्भ के रुप मेंउपयोग किए जाते हैं।जाहिर है सामाजिक मुद्दों पर चिंतन का दवाब उनकी कहानियों में स्पष्ट महसूस किया जा सकता है।स्वभाविक है ये कहानियां कल्पना से नहीं,विचार से उपजी हुई प्रतीत होती हैं। ये कहानियां ऐसी हैं जिसे हम रोजदेखते,सुनते भोगते हैं,सुभाष शर्मा हमारे दैनंदिनी जीवन के बीच से कहानियां उठाते हैं और अपने वैचारिकता के आवरण केसाथ हमारी संवेदना को चुनौती देते हुए कहानी के रुप में प्रस्तुत करते हैं। ‘ब्रेन हैमरेज’ एक ईमानदारी अधिकारी के संघर्षकी कहानी है ,जिसकी परिणति नायक प्रभाकरण के मौत के रुप में दिखाई देती है।सुभाष शर्मा की कहानियां आमतौर परउम्मीदों पर खत्म होती है,लेकिन कुछेक कहानियों में उनकी बेबसी वाकई पाठकों को डराती लगती है। यहां कहानी कीअंतिम पंक्ति के साथ देश की जैसे बहुसंख्यक जन को वे आवाज दे रहे होते हैं,’धुंध ही धुंध छाई है जारों ओर। न जाने कबछंटेगी यह धुंध भीतर से बाहर तक,व्यक्ति से देश तक’।

इस संग्रह की तीन कहानियाँ ‘संदेश’, ‘अपना आदमी कौन’, तथा ‘तूफान में दीया’ शिक्षण संस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार,धोखाधड़ी, अनैतिक चरित्र, छल-छद्म, राजनीतिक  हस्तक्षेप आदि का आख्यान प्रस्तुत करती हैं। ‘संदेश’ कहानी की नायिकाअंजुम आरा अपेक्षित सुधार के लिए अपनी प्रशासकीय निष्ठा का परिचय देती है पर प्रतिरोधी शक्तियाँ उसके कार्यों में तरह-तरह की बाधाएँ पहुँचाती हैं। दूसरी तरफ ‘अपना आदमी कौन’ में न सिर्फ अयोग्य बल्कि चरित्रहीन ईश्वरलाल की बहालीमेधा से इतर आधार पर कर ली जाती है। कुछ स्थानीय नेताओं का समर्थन जाति के आधार पर मिल जाता है। कतिपयअधिकारी भी भ्रष्ट शिक्षक का साथ देते हैं, स्थिति तब और विद्रुप दिखने लगती है जब वरीय ईमानदार अधिकारी काहस्तक्षेप भी उसका कुछ नहीं बिगाड पाता। ‘तूफान में दिया’ के शिक्षक नायक शिवनारायण को अपने ही सहकर्मियों औरप्रधानाध्यापक का, गलत काम नहीं करने के कारण, निरंतर विरोध का सामना करना पड़ता है पर अंततः उसकी भी जीतहोती है।  सुभाष शर्मा समाज के नकारात्मक पक्षों को उसकी सम्पूर्णता में लाते हैं पर ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की जीतभले ही नहीं दिखती हो,उसका संघर्ष नाउम्मीद नहीं होने देती है।

संग्रह में 21 कहानियां संकलित हैं,जो अलग अलग विचारभूमि पर ले जाती हैं।‘हिकरत’ वैष्णो देवी की यात्रा में सांप्रदायिक सौहाद्र की ओर भी पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती है और धर्म से ऊपर मानवता के प्रति भी। ‘कुहुकि कुहुकि जिया जाय’, ‘बोझ’ और ‘टकराव’ स्त्री-विमर्श को केन्द्र में रखकर लिखी गई कहानियाँ हैं। इन कहानियों में डा. शर्मा उन सवालों से निरंतर टकराते हैं जो स्त्री के चरित्र और नैतिकता की मर्यादा से जुड़े हैं।‘बर्बादी.काम’ में वे अफगानिस्तान के विद्रूप समाज और तालिबानी राजनीति को रेखांकित करने में संकोच नहीं करते तो कश्मीर की समस्या से उत्पन्न छीजती मानवीयता और कश्मीरी पंडितों की ‘घर वापसी’  पर भी ईमानदारी से अपनी बात रखते हैं।राजनीतिक विद्रुपता तो सुभाष शर्मा की कहानी का स्थायी भाव रहता है,लेकिन ‘दास्तान ए सबूत’ और ‘गांधी जयंती’ जैसी कहानियों में यह पूरी मुखरता से ध्वनित होती है। संग्रह की अधिकांश कहानियों में शिल्प का आग्रह महसूस नहीं किया जा सकता,वे शब्दों के जाल में यथार्थ को छिपाने की कोशिश नहीं करते,बल्कि पूरी ईमानदारी के साथ तथ्य और स्थितियों को किसी कथा वाचक की तरह पाठकों के सामने रखते हैं।संग्रह की कहानियों में वातावरण के अनुरुप शब्दों का चयन चौंकाता है। खर्रा,हिकरत,पोसरा जैसे शब्द इसके विन्यास में जाने के लिए प्रेरित करते हैं,हालांकि कहानी के बीच इन शब्दों के अर्थ खुलते भी जाते हैं।‘खर्रा’ की शुरुआत ही इस विवरण के साथ होती है,’जब चिट्ठीरसां ने मुझे एक बंद लिफाफा थमाया,तो मुझे फौरन महसूस हुआ कि यह चिट्ठी नहीं,खर्रा है’।

कहा जा सकता है शुभाष शर्मा के नए कथा संग्रह की कहानियां पाठकों के लिए खर्रा भी हैं,और खरी खरी भी। सुभाष शर्माके सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘खर्रा और अन्य कहानियां’ की अधिकांश कहानियों में कहीं न कहीं एक ईमानदार अधिकारीके संघर्ष,उनकी जिद और उनकी पीडा को अभिव्यक्ति मिलती है।

खर्रा और अन्य कहानियां(कहानी संग्रह)- डा.सुभाष शर्मा

प्रकाशक-किताब घर, प्रकाशन,नई दिल्ली-2

मूल्य-460 रुपये