नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने प्रख्यात उर्दू शायर आनंद नारायण मुल्ला के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक परिसंवाद का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में आनंद नारायण मुल्ला की पौत्री डॉ अमीता मुल्ला वाटल, प्रतिष्ठित उर्दू आलोचक और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष तथा महत्तर सदस्य प्रो गोपी चंद नारंग, मौलाना आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति एवं योजना आयोग की पूर्व सदस्य डॉ सैयदा सैयदैन हमीद, साहित्य अकादमी के उर्दू परामर्श मंडल के संयोजक प्रख्यात उर्दू शायर शीन काफ़ निज़ाम, प्रख्यात उर्दू लेखक व आलोचक एवं इस वर्ष के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रो शाफ़े क़िदवई, प्रो ज़हीर अली एवं डॉ दानिश इलाहाबादी ने शिरकत की. सैयदा सैयदैन हमीद ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि आनंद नारायण मुल्ला की शायरी पर किसी का प्रभाव नहीं था. वह किसी भी विचारधारा से प्रभावित नहीं थे और मानते थे कि ऐसा करने पर फ़नकार का लेखन प्रभावित होता है और उसकी धार कमज़ोर होती है. प्रो शाफ़े क़िदवई ने बीज वक्तव्य में कहा कि आनंद नारायण मुल्ला की शायरी को फिर से परखने की जरूरत है. अमीता मुल्ला वाटल ने आनंद नारायण मुल्ला से संबंधित कई संस्मरण प्रस्तुत किए.

 

इस अवसर पर प्रो गोपी चंद नारंग ने कहा कि आनंद नारायण मुल्ला ने मानवतावाद को प्राथमिकता दी और हर तरह की हिंसा का विरोध किया. शीन काफ़ निज़ाम ने कहा कि आनंद नारायण मुल्ला ने अपनी शायरी में मुहब्बत को तरजीह दी और हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि उर्दू को अपने मज़हब से ज़्यादा अहमियत देने के उनके फ़लसफ़े ने एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया. कार्यक्रम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता भी शीन काफ़ निज़ाम ने ही की और ज़हीर अली एवं दानिश इलाहाबादी ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. कार्यक्रम का संचालन हिंदी संपादक अनुपम तिवारी ने किया.  कार्यक्रम में उर्दू जगत से जुड़ी तमाम हस्तियां मनोरमा नारंग, चंद्रभान ख़याल, हक़्क़ानी अल क़ासमी, सरवरुल हुदा, अहमद अल्वी, नारंग साक़ी, ज़हीर बर्नी, मोईन शादाब, परवेज़ शहरयार, अबू ज़हीर रब्बानी, अतहर अंसारी, गुलाम नबी कुमार सहित तमाम महत्त्वपूर्ण लेखक, पत्रकार एवं विद्वान उपस्थित थे. आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के श्रीनिवासराव ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत अंगवस्त्रम और पुस्तकें भेंट कर किया.