लखनऊ: ‘जिस देश में हम रह रहे हैं, वहां के बिगड़ते सौहार्द को ठीक करने का दायित्व भी हमारा ही है। आतंकवाद का दंश जिस तरह देश के कई हिस्से झेल रहे हैं, वहां ये जख्म गहरे होते जा रहे हैं। ‘रिफ्यूजी कैम्प’ में बस इतना ही मैंने कहना चाहा है।’ यह कहना है लेखक आषीष कौल का। एक समारोह में मुलाकात के दौरान बरसों कारपोरेट सेक्टर में अपनी सेवाएं दे चुके आषीष ने ये बात प्रभात प्रकाशन से हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘रिफ्यूजी कैम्प’ के बारे में कही।
‘रिफ्यूजी कैम्प’ की कहानी एक साधारण लड़के अभिमन्यु के नेतृत्व में पांच हजार लोगों के अपने आप में एक विशाल आत्मघाती दस्ते में तब्दील होने की कहानी है ताकि वो अपने घर, अपने कश्मीर वापिस लौट सकें। ये आसान शब्दों में कही गयी इंसानी जज्बे की वो कहानी है जो हर भारतीय में छुपे अभिमन्यु को न सिर्फ झकझोरती है, बल्कि जगा भी रही है। संदेश स्पष्ट है कि जब तक आप स्वयं खुद के लिए खड़े न होंगे, कोई आपके साथ खड़ा नहीं होगा।
लेखक आशीष कौल बताते हैं ‘कश्मीर, उसका हजार साल पुराना इतिहास एक लंबे समय से चल रही समस्या, संभावित समाधन और उसमें युवाओं की अपेक्षित भूमिका को केंद्र में रख कर लिखी गयी किताब को पाठकों से जबरदस्त समर्थन मिला। कश्मीर से विस्थापन के बाद लखनऊ मेरा दूसरा घर बना। इस किताब की खास बात है कि एक तरपफ ये जहां नयी पीढ़ी को कश्मीर के असल इतिहास से परिचित कराती है साथ ही 1988-89 का सच बताती है, वहीं एक रोड मैप भी देती है कि कैसे समाज का हर तबका एक साथ आकर आतंक को खत्म कर सकता है।
आशीष कहते हैं-‘रिफ्यूजी कैम्प’ उन 48 घंटों के घटनाक्रमों का तो जिक्र करती ही है कि जिनमें वादी में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं और बलात्कार और बर्बरताओं का सामना करना पड़ा। साथ ही ये कश्मीर के एक हजार साल पुराने भौगोलिक राजनीतिक इतिहास से भी परिचय कराती है।
( रीता सिंह की रिपोर्ट)