अलीगढ़ः  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की शोध समिति की बैठक में कवि परितोष चक्रवर्ती के काव्यकर्म पर आशीष तिवारी ने शोधपत्र पढ़ा. याद रहे कि परितोष चक्रवर्ती हमारे समय के एक ज़रूरी कहानीकार तो हैं ही एक उम्दा कवि भी हैं. वह आज के दौर की खंड-खंड अस्मिताओं को गूंथकर एक वृहत्तर सामाजिक आख्यान को रचते हैं. म.प्र. साहित्‍य सम्‍मेलन द्वारा वागेश्‍वरी पुरस्‍कार-1999, छत्‍तीसगढ़ साहित्‍य सम्‍मेलन द्वारा स्‍व. प्रमोद वर्मा पुरस्‍कार-2000, छत्‍तीसगढ़ राजभाषा प्रचार समिति सम्‍मान- 2001 आदि से सम्मानित परितोष की प्रमुख कृतियों में कविता संग्रह- 'अक्षरों की नाव', 'ऊँचाइयों वाला बौनापन'; कहानी संग्रह- 'घर बुनते हुए', 'कोई नाम न दो', 'सड़क नं. 30', 'अंधेरा समुद्र'; व्यंग्य संग्रह- 'आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा', 'फक्‍कड़नामा'; लघु उपन्यास- 'अभिशप्त दाम्पत्य', 'प्रिंट लाइन' और नाटक- 'मुखौटेशामिल हैं.
परितोष चक्रवर्ती बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार हैं. उनकी रचनाओं में आज के समय का सच बखूबी दिखता है. खासकर नब्बे के दशक के बाद भारतीय समाज पर छाए बाज़ारवाद, मुक्त अर्थव्यवस्था की हिंस्रता, आवारा पूँजी और काले धन का असीमित विस्तार, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की घातक प्रतिस्पर्धा, चमकीले विज्ञापनों के मायजाल पर उनकी पैनी नजर है और वह यह मानते हैं कि आज के दौर का आम आदमी कई कठिन पाटों के बीच बुरी तरह पिस रहा है. परितोष के सृजनकर्म पर काम करने वालों का कहना है कि वे केवल समय व समाज के ही नहीं संबंधों के भी रचनाकार हैं.