नई दिल्ली: हिंदी की चर्चित लेखिका और हंस पत्रिका की संपादन सहयोगी अर्चना वर्मा के निधन से साहित्य जगत में शोक व्याप्त है. 72 वर्षीय लेखिका ने की तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद उन्हें दिल्ली के पटेल चेस्ट चिकित्सा संस्थान में भर्ती कराया गया था.  अर्चना वर्मा का जन्म 6 अप्रैल 1946 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. वह हिंदी अकादमी की सदस्य थीं और जीवन के आखिरी पलों तक महिलाओं के हक के लिए संघर्ष करतीं रहीं. उनके चर्चित प्रकाशनों में कविता संग्रह कुछ दूर तक, लौटा है विजेता; कहानी संग्रह स्थगित, राजपाट तथा अन्य कहानियां; आलोचना 'निराला के सृजन सीमांत: विहग और मीन', 'अस्मिता विमर्श का स्त्री-स्वर' शामिल है.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर करने वाली अर्चना वर्मा दिल्ली विश्विद्यालय के मिरांडा कालेज में हिंदी विभाग में शिक्षिका थीं और प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी की सहयोगी थीं. उन्होंने हिंदी साहित्य की चर्चित पत्रिका 'हंस' में 1986 से लेकर 2008 तक संपादन सहयोग तथा 2008 से 'कथादेश' के अलावा औरत: उत्तरकथा, अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य, देहरि भई बिदेस के प्रकाशन में संपादन सहयोगी के रूप में अपनी भूमिका निभाई.  वह जाने माने पत्रकार लेखक रघुवीर सहाय के संपादन में निकलने वाली पत्रिका 'दिनमान' में पुस्तक समीक्षा भी करती थीं. वह युवा साहित्यकारों के बीच भी बेहद लोकप्रिय थी. उनके निधन की सूचना मिलते ही कई युवा व स्थापित साहित्यकारों ने सोशल मीडिया पर भी शोक संवेदनाएं दर्ज कीं. ज्योतिष जोशी की टिप्पणी थीं, अर्चना वर्मा नहीं रहीं… वे बहुत सूक्ष्म ढंग से बात और विचार करती थीं. हिंदी का संसार कुछ निष्प्रभ हो गया.