दैनिक जागरण वार्तालाप
जागरण वार्तालाप लेखकों का मंच है. इस मासिक आयोजन में लेखकों के साथ उसकी नवीनतम कृति पर बातचीत की जाती है. श्रोताओं के तौर पर शहर के प्रबुद्ध लोगों को आमंत्रित किया जाता है. कोशिश ये की जाती है कि साहित्य से जुड़े लोगों के अलावा अन्य क्षेत्र के लोगों को भी आमंत्रित किया जाए ताकि पढ़ने की आदत का विकास हो सके. पहले लेखक के साथ उनकी पुस्तक और फिर अन्य मसलों पर सवाल जवाब होते हैं और फिर मौजूद श्रोताओं को भी प्रश्न-उत्तर का मौका मिलता है. जागरण वार्तालाप का उद्देश्य पुस्तक और पाठक संस्कृति का विकास करना है. इस बातचीत के मुख्य अंश दैनिक जागरण में प्रकाशित किए जाते हैं.
किश्वर देसाई
क्रांति की ज्वाला न धधक जाए, इसलिए जनरल ओ’ ड्वायर ने चलवाई थीं जलियांवाला बाग में गोलियां
जागरण संवाददाता, अमृतसर
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में क्रांति की मशाल लेकर पहुंचे क्रांतिकारियों पर क्रूर अंग्रेज प्रशासक जनरल ओ’ ड्वायर द्वारा फायर करने का आदेश ब्रिटिश हुकूमत की सुनियोजित साजिश थी। इस नरसंहार से पहले और बाद में भी अमृतसर में बहुत कुछ हुआ, जिनसे अधिकतर लोग अपरिचित हैं। जलियांवाला बाग नरसंहार क्यों हुआ, इससे जनमानस को अवगत करवाने के लिए जलियांवाला बाग में ‘दैनिक जागरण’ ने शनिवार को ‘क्रूरता के सौ साल’ विषय पर वार्तालापका आयोजन किया। दैनिक जागरण वार्तालाप में बातचीत के लिए लंदन से आईं प्रसिद्ध लेखक किश्वर देसाई थीं जिनसे संवाद किया वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने। जलियांवाला बाग नरसंहार क्यों हुआ? ब्रिटिश हुकूमत ने जनरल डायर को ही इस काम के लिए क्यों चुना? इस नरसंहार से पहले महात्मा गांधी, सैफुद्दीन व सत्यपाल जैसे महान राष्ट्रभक्तों को जेल में बंद कर दिया गया? ऐसा क्या हुआ था जो अंग्रेज बौखला गए। क्यों 13 अप्रैल को एक साथ हजारों निहत्थे लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया गया? इन सभी तथ्यों को प्रमाणिकता से अपनी पुस्तक में वर्णित करने वाली लेखिका किश्वर देसाई ने ‘वार्तालाप’ के मंच पर अपने विचार रखे।
हिंदू-मूसलमानों व सिखों की एकजुटता देखकर घबरा गया डीसी
उन्होंने अपनी किताब के पन्नों के हवाले से बताया कि ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में रॉलेट एक्ट लागू करने की तैयारी कर ली थी। इस एक्ट के लागू होने से अपील-दलील और वकील के बिना ही लोगों को जेल भेजने का प्रावधान था। रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी के आह्वान पर देशभर में सत्याग्रह आंदोलन की रूपरेखा तय हो चुकी थी। लोग अपने-अपने क्षेत्र में सत्याग्रह के लिए तैयार थे। अमृतसर में जलियांवाला बाग में आंदोलन करने का फैसला हुआ था। 6 अप्रैल को दिल्ली, अमृतसर व अहमदाबाद में आंदोलन शुरू भी हो चुका था। अमृतसर में हुए प्रदर्शन के बाद डीसी अरविंद हिंदू-मूसलमानों व सिखों की एकजुटता देखकर घबरा गया। उसे डर था कि 1857 की तरह अमृतसर में कहीं क्रांति की ज्वाला न धधक उठे।
ओ‘ ड्वायर के ऑर्डर पर अमृतसर में आर्मी बुला ली गई
किश्वर देसाई ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि 9 अप्रैल को अमृतसर में रामनवमी की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इसमें भी सभी धर्मों के लोग सम्मिलित हुए। डीसी अरविंद तब भी घबराया था। उस समय पंजाब का गवर्नर जनरल माइकल ओ’ ड्वायर था। उसने एक ऑर्डर जारी किया, जिसके तहत महात्मा गांधी को अरेस्ट कर लिया गया। वहीं, सैफुदीन किचलू व सत्यापाल भी गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि ये नेता इस आंदोलन का हिस्सा बनें, क्योंकि इनके नेतृत्व में हिंदू-मूसलमान और सिख एकजुट थे। देशभक्त अपने नेताओं को रिहा करवाने के लिए डीसी अरविंद के बंगले की ओर जा रहे थे, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें रास्ते में रोक लिया। इन पर गोलियों की बौछार की गई। काफी लोग मारे गए। इसके बाद गुस्साए लोगों ने पांच ब्रिटिश लोगों की हत्या कर दी। 11 अप्रैल को जनरल ओ’ ड्वायर के ऑर्डर पर अमृतसर में आर्मी बुला ली गई।
दहशत से बच्ची ने प्राण दिए त्याग
ओ’ ड्वायर चाहता था कि पांच ब्रिटिश की मौत का बदला भारतीयों की मौत से लिया जाए। 11 अप्रैल की रात जनरल ओ’ ड्वायर अमृतसर आया। वह इतना क्रूर प्रशासक था कि उसने अमृतसर के खूह कौडिय़ां की तंग गली में क्रॉलिंग ऑर्डर जारी किया था। असल में इस गली में एक ब्रिटिश महिला को लोगों ने मारने की कोशिश की थी। अस्पताल में दाखिल इस महिला से जनरल डायर मिला तो उसकी हालत देखकर क्रोध से भर उठा। उसने गली में क्रॉलिंग ऑर्डर यानी की रेंग कर गली से गुजरने का आदेश जारी कर दिया। जो इस आदेश का पालन नहीं करता, उसे कोड़ों से पीटा जाता। इस गली में औरतें घर में कैद होकर रह गईं। एक बच्ची रोती थी कि अंग्रेज मुझे भी मार देंगे। अंग्रेज पैट्रोलिंग करते समय लोगों के कबूतर लेकर उन्हें तंदूर पर पकाकर खाते थे। यह बच्ची देखती और डर जाती। एक दिन इस बच्ची ने डर और दहशत की वजह से प्राण त्याग दिए। 13 अप्रैल को जनरल ओ’ ड्वायर ने सुनियोजित ढंग से जलियांवाला बाग में पहुंचे लोगों पर गोलियां दागीं। लोगों को बताया गया कि यह गोलियां ‘फोकी’ हैं, आपको कुछ नहीं होगा। लोगों को गुमराह करके जनरल ओ’ ड्वायर ने खूनी खेल खेला। लाशें के ढेर बनते गए। लोग दबते गए। किश्वर देसाई ने कहा कि ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जिनके विषय में आम जनमानस को जानकारी नहीं। इस पुस्तक में हर उस घटना का उल्लेख किया गया है जो 13 अप्रैल से पहले घटी। दस्तावेजों पर आधारित पुस्तक की एक प्रति जिला लाइब्रेरी में रखी जाएगी। इसमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान का साझा दर्द है।
जोशुआ पोलक
लखनऊ : शनिवार को दैनिक जागरण वार्तालाप में अध्यात्म, ध्यान और साहित्य का मर्म टटोला गया। लेखक जोशुआ पोलॉक ने पाठकों की जिज्ञासाओं को भी शांत किया। आइएएस पार्थ सारथी सेन शर्मा ने लेखक से संवाद किया। अनुवादक ऋषि रंजन ने भी लोगों के सवालों के जवाब दिए। आयोजन गोमती नगर स्थित जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में हुआ।
लेखक के अध्यात्म के प्रति रुझान के साथ वार्तालाप की शुरुआत हुई। जोशुआ पोलॉक ने कहा कि बौद्ध धर्म और पतंजलि आदि पर केंद्रित कई किताबें पढ़ीं। बड़े धर्म गुरुओं और उनके शिष्यों को भी पढ़ा। हमेशा लगा दर्शन शास्त्र शिक्षित करता है पर परिवर्तित नहीं। इसके लिए एहसास और अभ्यास जरूरी है। अनुवादक ऋषि रंजन ने कहा कि हार्टफुलनेस पद्धति का उद्देश्य ट्रांसमिशन (परिवर्तन) है। यह घर बैठे ही दिव्य से जुडऩे का अनुभव है। इसके लिए यौगिक प्राणाहुति के साथ सफाई (सोच के तरीकों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं आदि से मुक्ति) और प्रार्थना का भी अपना महत्व है। अंत में पार्थ सारथी सेन शर्मा ने स्वीकार्यता को अध्यात्म का आनंद बताकर वार्तालाप को एक सार्थक मोड़ पर समाप्त किया। इस मौके पर दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अभिजित मिश्रा भी मौजूद रहे।
आनंद नीलकंठन
दैनिक जागरण वार्तालाप श्रृंखला का तीसरा आयोजन लखनऊ के प्रतिष्ठित युनिवर्सल बुकसेलर, गोमतीनगर में किया गया। मिथक लेखन की जटिलताओं पर मशहूर लेखक आनंद नीलकंठन से बातचीत की टीवी एंकर अनुराग पुनेठा ने। लखनऊ के प्रबुद्ध श्रोताओं के बीच आनंद नीलकंठन ने अपने लेखन से जुड़ी कई बातें साझा की। आनंद नीलकंठन केरल के रहनेवाले हैं और लखनऊ में उन्होंने पूरी बातचीत हिंदी में की। दैनिक जागरण वार्तालाप एक ऐसा मंच है जहां किसी भी भाषा के लेखक से हिंदी में बातचीत की जाती है। आनंद नीलकंठन ने भारतीय पौराणिक चरित्रों पर अपनी एक अलग ही दृष्टि पेश की और कहा कि मिथकीय और पौराणिक चरित्रों पर लिखना बहुत मुश्किल कार्य है। दो चार किताबें पढ़कर कोई भी मिथकीय चरित्रों पर नहीं लिख सकता है। आनंद के मुताबिक जगह के हिसाब के मिथकीय या पौराणिक चरित्रों का चित्रण अलग अलग होता है। इस संदर्भ में उन्होंने थाईलैंड के रामायण और भारतीय रामायण की कहानी पर विस्तार से प्रकाश डाला।
मैत्रेयी पुष्पा
दैनिक जागरण वार्तालाप का दूसरा आयोजन दिल्ली के प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर में हुआ था। वार्तालाप में शामिल हुई थीं हिंदी की सुप्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्पा, कहानीकार विवेक मिश्र, सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज और हिंद युग्म के शैलेश भारतवासी। वार्तालाप की इस कड़ी में ¨हिंदी में बेस्टसेलर की अवधारणा पर जमकर चर्चा हुई । वार्तालाप में मैत्रेयी पुष्पा से साफ किया कि उनको पाठकों की कमी नहीं है, रॉयल्टी मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती। कहानी कार विवेक मिश्र का मानना था कि हिंदी का लेखक रॉकेट की तरह लांच नहीं होता, बल्कि उसकी जमीन धीरे-धीरे तैयार होती है। सामयिक प्रकाशन के निदेशक महेश भारद्वाज ने कहा कि पश्चिमी देशों की तर्ज पर ¨हिंदी में बेस्टसेलर खोजना स्वागत योग्य कदम है। हिंद युग्म प्रकाशन के निदेशक शैलेश भारतवासी ने जोर देकर कहा कि हिंदी में प्रकाशकों के पास न तो धनबल और न ही बेहतर वितरण प्रणाली। बेस्टसेलर पर हुई इस गर्गामर्म बहस का संचालन टीवी पत्रकार राखी बक्षी ने किया।
जयराम रमेश
जागरण वार्तालाप की शुरुआत नोएडा से हुई, जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने अपनी नई किताब किताब इंदिरा गांधी, अ लाइफ इन नेचर पर पर करीब दो घंटे तक बातचीत की और सभी सवालों का खुलकर जवाब दिया। । इंदिरा गांधी की जन्म शताब्दी वर्ष में प्रकाशित जयराम रमेश की इस पुस्तक से देश की पूर्व प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व का एक नया पहलू पाठकों के सामने आया है। जयराम रमेश ने किताब लिखने के अपने अनुभवों के साथ साथ पर्यावरण और अन्य मुद्दों पर भी अपनी राय रखी। मथिरा में रिफाइनरी लगाने के इंदिरा गांधी के फैसले पर उन्होंने सवाल भी खड़ा किया। देश में इमरजेंसी लगाने के सवाल पर साफ तौर पर उनका मानना था कि संजय गांधी की मां ने इमरजेंसी लगाई और जवाहरलाल की बेटी ने देश से इमरजेंसी हटाई। रेडिसन ब्लू होटल में आयोजित इस पूरी बातचीत में नोएडा के प्रबुद्ध लोगों ने भी जयराम रमेश से सवाल जवाब किए।
प्रो सुधीश पचौरी
साहित्य को खांचे में बांटना भ्रामक- प्रो सुधीश पचौरी
दैनिक जागरण वार्तालाप श्रृंखला का चौथा आयोजन बिहार की राजधानी पटना के भव्य सम्राट अशोक कन्वेंशन केंद्र के ज्ञान भवन में किया गया था। पटना में आयोजित जागरण वार्तालाप में अतिथि लेखक थे दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक प्रोफेसर सुधीश पचौरी। उनसे बातचीत की संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने। लोकप्रिय बनाम गंभीर साहित्य पर हुई इस चर्चा में सुधीश पचौरी ने साहित्य को खांचे में बांटने की प्रवृत्ति को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि दो चार सौ लोगों के बीच जो साहित्य पढ़ा लिखा जाता है उससे बेहतर है एक बड़े पाठक वर्ग के बीच पढ़ा जानेवाला साहित्य। उन्होंने विश्व के अनेक लेखकों का उदाहरण देते हुए अपनी अवधारणा को पुष्ट किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्य को पाठकों का कंठहार बनाना होगा और इसकी जिम्मेदारी लेखकों पर है। बातों बातों में प्रो सुधीश पचौरी ने फिल्म पद्वावती पर चल रहे विवाद पर भी जमकर चुटकी ली।