कानपुरः इंजीनियरिंग के छात्रों को लेकर एक आमधारणा है कि वे अंग्रेजी दा होते हैं, पर कानपुर आईआईटी इस धारणा को गलत साबित करने की दिशा में बढ़ रहा है. यहां के छात्रों द्वारा गठित हिंदी साहित्य सभा ने तीन दिवसीय वाद-विवाद कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें छात्रों का उत्साह देखते ही बना. हिंदी साहित्य सभा ने 'अंतरंग' की पहली कड़ी के रूप में वक्तव्य कला में रुचि रखने वाली कैम्पस की जनता के लिए 'वाद-विवाद कार्यशाला' आयोजित की और इसके लिए सुप्रसिद्ध 'बोल डिबेटिंग सोसाइटी' के पारंगत वक्ताओं की सेवा लेकर प्रतिभागियों को वाद-विवाद की विभिन्न शैलियों से अवगत कराने के साथ ही भाषण कला की तमाम बारीकियों को जानने का मौका मुहैया कराया.

याद रहे कि हिंदी साहित्य सभा ने इसी माह सआदत हसन मंटो के इस चर्चित वाक्य कि – 'अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह है कि यह जमाना नाकाबिले-बर्दाश्त है,' के संदर्भ के साथ 'विभाजन' विषय पर भी एक साहित्यिक चर्चा का आयोजन किया था. इस चर्चा का उद्देश्य साहित्य और लेखन की रोशनी में स्वतंत्रता के बाद विभाजन की घोषणा के कारण हुई सांप्रदायिक झड़प पर प्रकाश डालना था. हिंदी साहित्य सभा ने इस दौरान प्रसिद्ध लेखकों, भीष्म साहनी, सआदत हसन मंटो, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अमृता प्रीतम एवं अन्य रचनाकारों की विविध लेखन शैलियों से  उस जमाने के हालातों का अनुमान लगाने के लिए उनकी विभिन्न कहानियों, उपन्यासों, कविताओं और नज्मों पर चर्चा की.