मुंबई: “प्राचीन भारत में गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले अंतेवासी यानी विद्यार्थी बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग पर भी आगे बढ़ते थे. भारत की प्राचीन परंपराओं के उपयोगी तत्वों से हमारे विद्यार्थियों को जोड़ना हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक मुख्य पक्ष है.” यह बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कैवल्यधाम संस्थान के शताब्दी वर्ष समारोह के उद्घाटन के दौरान ‘स्कूल शिक्षा प्रणाली में योग का एकीकरण‘ विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन में कही. उन्होंने कहा कि भारत की योग विद्याविश्व समुदाय को हमारी अमूल्य सौगात है. भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस‘ के रूप में मनाने का निर्णय लिया. सन 2015 से प्रतिवर्ष विश्व के अधिकांश देशों में उत्साह के साथ योग दिवस मनाया जाता है. अपने संकल्प में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह स्पष्ट किया था कि योग पद्धति स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है और पूरे विश्व समुदाय के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है. हमारी यह अमूल्य विद्या हमारे बच्चों को और हमारी युवा पीढ़ी को लाभान्वित करेइसी ध्येय के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित योग विद्या को शिक्षण व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है.

राष्ट्रपति ने कहा कि योग पद्धति व्यक्ति के समग्र विकास का मार्ग है. शारीरिकमानसिकभावनात्मकसामाजिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष के माध्यम के रूप में योग प्रणाली को प्रभावी माना जाता है.योग के माध्यम से चित्तवृत्तियों का निरोध करके प्रज्ञा की स्थिति अर्थात समत्व की स्थिति प्राप्त की जा सकती है.योगस्थ व्यक्ति को आंतरिक शांति का अनुभव होता है. उन्होंने कहा कि 20वीं सदी में स्वामी कुवलयानंद जी जैसे महान व्यक्तित्वों ने योग प्रणाली के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उपयोगिता को प्रचारित किया. कैवल्य अर्थात मोक्ष को हमारी परंपरा में सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ माना गया है. अर्थकाम और धर्म के चरणों से गुजर कर व्यक्ति कैवल्य प्राप्त करना चाहता है. ईश उपनिषद में कहा गया है विद्ययाऽमृतमश्नुते. उस उपनिषद में यह समझाया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं. व्यावहारिक ज्ञान से अर्थधर्म और कामनाओं की प्राप्ति होती है. अध्यात्म से अमरता यानी मोक्ष अथवा कैवल्य की प्राप्ति होती है. समग्र शिक्षा में व्यावहारिक और आध्यात्मिक ज्ञान का संगम होता है. योग का अनुशासन कैवल्य प्राप्त करने में सहायक होता है यह तथ्य प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन अनुसंधान और परीक्षण के बाद प्रकाशित किया था. शताब्दियों पूर्वमहर्षि पतंजलि ने अपनी महान कृति योगसूत्र में तब तक उपलब्ध प्रामाणिक अनुसंधान का संकलन किया था.बीसवीं सदी में स्वामी कुवलयानन्द जैसी महान विभूतियों ने योग पद्धति की वैज्ञानिकता तथा उपयोगिता को नई ऊर्जा के साथ प्रचारित-प्रसारित किया.उन्होंने योग तथा अध्यात्म के आधार में स्थित आधुनिक विज्ञान की मान्यताओं को विश्व समुदाय के सम्मुख प्रस्तुत किया.हम सभी जानते हैं कि अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने अभियान के पहले योगाभ्यास करके अपने शरीर और मन को और अधिक सक्षम बनाया है.