लखनऊ: भारतेंदु नाट्य अकादमी में संवादी के दूसरे सत्र में ‘आज की स्त्री और कविता‘ विषय सत्र में संवाद से यह संकेत निकला कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं, लेकिन इस युग में आज भी स्त्री अपनी आजादी, अपने स्वायत्त व्यक्तित्व के लिए संघर्षरत है. उसे देवी तो मान लिया गया, लेकिन समान मनुष्य, समान मस्तिष्क की भांति नहीं देखा गया, जबकि स्त्री समाज में बराबर की भागीदार है. यहां तक कि अर्थ और ज्ञानतंत्र में भी. फिर भी पूरा समाज स्त्री को स्वायत्त अस्तित्व के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं. 10-15 पुस्तकें लिख लेने, पहचान बना लेने के बाद भी उसे स्वयं को प्रमाणित करना पड़ता है. स्त्रियां चाहती हैं ऐसी धरती, जहां उनके स्वायत्त अस्तित्व को स्वीकार किया जाए. साहित्यसुधी आलोचक, कवि ओम निश्चल ने कवयित्री रश्मि भारद्वाज, जोशना बैनर्जी आडवाणी और शैलजा पाठक से संवाद किया. उन्होंने आज के युग में स्त्रियों की समस्या क्या है? से बात शुरू की. रश्मि भारद्वाज ने नारी की पीड़ा बयां की और सामाजिक भेदभाव को खत्म करने का संदेश दिया.
जोशना बैनर्जी अपनी कविताओं में क्या खोजती हैं और आज की स्त्री को कहां पाती हैं? के सवाल पर बताया कि वे अपनी मां के दौर से कविता की यात्रा आरंभ कर भक्तिकाल तक पहुंचीं. वहां से आदिकाल, रीतिकाल फिर आधुनिक काल की ओर लौटीं. इस पूरे सफर में सभी ने औरत की विवशता के साथ ही मर्द का पौरुष भी देखा. ओम निश्चल कहा कि लिखना भी आजादी का उद्घोष है, लेकिन काव्य रचना कर कितना प्रशंसित और निंदित होती हैं? शैलजा पाठक ने उत्तर में कविता पढ़ी, ‘उठाकर चाक पर रख दो मेरे इस देह की माटी, लिखा कुछ और था इसपे मुझे कुछ और होना था…‘. फिर कहा, औरत बंधना भी जानती है और बांधना भी, लेकिन वह केवल अपने लिए जगह मांगती है, जो उसका अधिकार है. स्त्री आखिर चाहती क्या है? इस प्रश्न पर शैलजा ने कहा कि मैं यहां बात कर रही हूं, लेकिन पीछे का जीवन आसान नहीं है. कई जगह जवाब देना होता है. रश्मि ने अपनी कविता ‘घोघो रानी कितना पानी‘ का जिक्र करते हुए कहा कि मैं जिस क्षेत्र से आती हूं वहां पानी ही पानी है. मेरी कविता तीन दुनिया से आती है. एक वह दुनिया, जहां मेरी भूमिकाएं हैं. मां, बहन, बेटी और पत्नी. दूसरी दुनिया मेरा कार्य क्षेत्र है और तीसरी दुनिया हमारे अंदर बसती है. इन्हीं दुनिया के अंतर्संवाद से मेरी कविताएं आती हैं. कविताएं हैं तो मैं जीवित हूं, मेरे सपने जीवित हैं. कविता लिखना ही सबसे बड़ी क्रांति है. कविता के परिप्रेक्ष्य में एक स्त्री की विवशता, भागी हुई लड़कियों के बीच जागी हुई लड़कियां, पुरुष का मनोविज्ञान, गहरी अभिव्यक्ति और यथार्थ की बातें भी सामने आईं.