हाता: झारखंड साहित्य संस्कृति परिषद की मासिक गोष्ठी संस्थापक जनमेजय सरदार मौजूदगी में हुईजिसकी अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष भवतारण मंडल ने की. कमल कांति घोष द्वारा विवेकानंद स्वामी के संगीत से गोष्ठी की शुरुआत की. इस अवसर पर संपादक सुनील कुमार डे ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है. साहित्य समाज को बदल सकता है और बर्बाद भी कर सकता है. साहित्य एक महासेवा हैइसलिए साहित्यकारों को समाज निर्माण के लिए रचनात्मक साहित्य की रचना करनी चाहिए. इस अवसर पर सुधांशु शेखर मिश्रनिरंजन सरदार आदि ने भी अपने अपने विचार रखे. इस अवसर परर एक बहुभाषी कवि-गोष्ठी भी आयोजित हुईजिसमें भवतारण मंडल ने हिंदी में ‘झूठा‘ और बांग्ला में ‘जे जाय से कांदे ना‘, सुनील कुमार डे ने बंगला में ‘जगाओ तोमार प्रेरणा आबार‘ और हिंदी में ‘हंस के जिओ जैसे गीत और कविताओं से दिल जीत लिया.

कवि गोष्ठी में दूसरे कवियों ने भी कम भावनात्मक प्रस्तुतियां नहीं दीं. करुणामय मंडल ने हिंदी में ‘बाबा विश्वकर्मा‘ और बांग्ला में ‘आजकेर कवि गोष्ठी‘, शंकर चंद्र गोप ने हिंदी में ‘डोर किसी के हाथ है‘, सुदीप मुखर्जी ने हिंदी में ‘माता पिता‘, राजकुमार साहू ने हिंदी में ‘बिछड़न‘, विकास कुमार भगत ने हिंदी में ‘भारत देश के नौजवानों‘ शीर्षकों और बोल वाली स्वरचित कविताओं का पाठ किया. इस अवसर पर पर मिथुन साहू ने नजरुल इस्लाम की कंडारी हुसीयर कविता का पाठ किया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन परिषद के सचिव शंकर चंद्र गोप ने किया. साहित्य गोष्ठी का संचालन राजकुमार साहू ने किया. इस अवसर पर शंकर चंद्र गोपसुधांशु शेखर मिश्रकरुणामय मंडलभवतारण मंडलकृष्ण पद मंडलराजकुमार साहूमिथुन साहूसुदीप मुखर्जीसोहन लालरवींद्र नाथ सरदारसंजय दाससुरज प्रकाशविकास कुमार भगतनिरंजन सरदार आदि मौजूद थे.