नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी के लेखक से भेंट कार्यक्रम के अंतर्गत प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा को ने श्रोताओं के समक्ष अपनी रचना-यात्रा को तो साझा किया हीश्रोताओं की जिज्ञासा का भी समाधान किया. कार्यक्रम के आरंभ में उनका स्वागत साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम् एवं साहित्य अकादेमी की पुस्तकें भेंट करके किया. इस अवसर पर प्रकाशित ब्रोशर का विमोचन नासिरा शर्मा द्वारा किया गया. अपने लेखन अनुभवों को साझा करते हुए नासिरा शर्मा ने कहा कि उनका लेखन बचपन में बंटवारे के ख़ौफ और बाद में पाकिस्तान और चीन से हुई लड़ाइयों से प्रभावित रहा है. ईरान-इराक़ जाने और इन देशों पर लिखने की शुरुआत अचानक ही हुईउसके पीछे कोई सोची समझी नीति नहीं थी. फ़ारसी जानने के कारण इन देशों तक पहुंचना और उनको समझना आसान हुआ. लंबे समय तक मुझे यह लगता रहा कि मैं समाज को जो देना चाहती हूं वह नहीं दे पा रही हुं और मुझे कभी मौत से डर भी नहीं लगा मगर मैं मरना चाहती थी.

अपने वक्तव्य में शर्मा ने कहा कि हालांकि बंटवारे का दर्द मैंने नहीं सहा लेकिन दूसरों की पीड़ा ने मुझे प्रभावित किया. यह सब देखने के बाद समझ आया कि यह सियासत ही थीजिसने घरों और आंगनों को बांटा और इसका शिकार केवल मुस्लिम ही नहीं हिंदू भी हुए. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि उस समय जो हिंसा हुई थी वह तो शारीरिक थीलेकिन अब उससे ज्यादा मानसिक हिंसा होती है. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी कहा कि इराक़-ईरान पर मेरे लेखन की चर्चा ज्यादा होती रहती हैजिस कारण दूसरी रचनाएं पीछे छूट जाती हैं. स्त्री लेखन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने ‘शाल्मली‘ उपन्यास लिखा तब स्त्री विमर्श जैसी कोई चीज़ नहीं थी. मैं स्त्री-लेखन में बदले और प्रतिशोध की भावना से सहमत नहीं हूं. पहले की तुलना में अब स्त्रियां ज्यादा मुखर हुई हैं. लेकिन गांव-कस्बों में यह विमर्श अभी पहुंचा भी नहीं है. आज का स्त्री लेखन दूसरों की पीड़ा नहीं देख रहा है बल्कि स्वयं की आज़ादी चाहता हैलेकिन आजादी के साथ जो सीमा होनी चाहिए उसे कौन तय करेगा. आलोचना में स्त्रियों की उपस्थिति पर उन्होंने कहा कि अगर महिला लेखन में दम और ईमानदारी है तो वह आलोचना के क्षेत्र में आएंतो उनका स्वागत होगा. कार्यक्रम में निर्मलकांति भट्टाचार्जीराजकुमार गौतमबलरामप्रताप सिंहअशोक तिवारी आदि लेखकपत्रकार एवं युवा विद्यार्थियों सहितरांचीदेहरादून आदि दूरदराज से आए साहित्यप्रेमी भी उपस्थित थे.