नई दिल्ली: अमेरिका में रह रहे प्रोफेसर कमल वर्मा के निधन से दक्षिण एशियाई साहित्य ने एक बड़ा विद्वान खो दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर दुःख जाहिर करते हुए लिखा कि प्रोफेसर कमल वर्मा प्रत्येक भारतीय आप्रवासी द्वारा प्रदर्शित धैर्य और दृढ़ संकल्प के सच्चे अवतार थे. उन्होंने अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के लिए कड़ी मेहनत की और साथ ही भारतीय जड़ों के प्रति सच्चे बने रहे… मातृभूमि में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. इसी तरह यूनिवर्सिटी आफ पिट्सबर्ग ‘यूपीजे‘ के अध्यक्ष डा जेम स्पेक्टर ने डा कहा कि डा वर्मा एक प्रतिभाशाली विद्वान, असाधारण शिक्षक और मार्गदर्शक, और अत्यधिक सम्मानित सहयोगी के साथ मेरे प्रिय मित्र थे. सिएटल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नलिनी अय्यर और साउथ एशियन रिव्यू की संपादक ने कहा, “डा वर्मा एक महान शख्सियत थे, जिनका कई लोगों पर प्रभाव था, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में दक्षिण एशियाई विद्वानों और साहित्य के लिए मार्ग प्रशस्त किया और अपने परिवार की देखभाल की. उन्होंने दक्षिण एशियाई साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में दुनिया भर में सैकड़ों संकाय सदस्यों को प्रशिक्षित और प्रेरित किया. यह एक ऐसा काम है जिसके लिए उन्हें लंबे समय तक याद किया जाएगा.”
याद रहे कि डा वर्मा का जन्म 1932 में भारत के पंजाब में हुआ था. वह अपने बडे़ परिवार में कालेज जाने वाले पहले सदस्य थे. उन्होंने डीएवी कालेज जालंधर,आगरा विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया. प्रोफेसर वर्मा ने पेंसिल्वेनिया के जान्सटाउन में पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में 42 वर्षों तक पढ़ाया. सेवानिवृत्ति के बाद प्रोफेसर एमेरिटस और विश्वविद्यालय अध्यक्ष के सलाहकार के रूप में उनका काम जारी रहा. उनके बेटे रिचर्ड वर्मा न केवल भारत में अमेरिकी राजदूत थे, बल्कि वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका के उप सचिव यानी उप विदेश मंत्री के रूप में कार्यरत हैं. डा वर्मा ने अपनी पुस्तकों से भी एक खास पहचान बनाई. उनकी पुस्तक ‘द इंडियन इमेजिनेशन‘ को भारतीय इतिहास के औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक काल के प्रमुख लेखकों पर केंद्रित विशेष पुस्तक के रूप में देखा जाता है. लेखक मुल्क राज आनंद पर केंद्रित उनकी पुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग मुल्क राज आनंद‘ को भी काफी सराहा गया. इसमें डा वर्मा और आनंद के बीच 15 वर्षों से अधिक के पत्रों की एक शृंखला शामिल थी, जिसमें उन विचारों पर फिर से ध्यान केंद्रित किया गया था जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए औपनिवेशिक संघर्ष को प्रेरित किया था.