लखनऊ: “हिंदी बोलने में हम कतराते हैंजबकि मातृभाषा हमारे लिए सर्वोपरि होनी चाहिए. दैनिक जागरण ने इस कमी को दूर करने के लिए लगातार उल्लेखनीय प्रयास किए हैं. संवादी उसी का एक हिस्सा है.” उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने लखनऊ में अपनी भाषा में अपनी बात कहने-सुनने के लिए आयोजित अभिव्यक्ति के उत्सव ‘दैनिक जागरण संवादी‘ को कुछ इस तरह परिभाषित किया. संवादी को आयोजनों की विविधता की दृष्टि से देखेंतो पहला दिन राजनीति-अर्थनीतिधर्मकवितासंगीत पर विमर्श का रहा. पाठक ने इस उत्सव का उद्घाटन करने के साथ ही हिंदी की समृद्धि और विस्तार की चर्चा को आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा कि हमारी नौजवान पीढ़ी पढ़ने की जगह सुनने पर भरोसा रखती है. जब तक हम पढ़ेंगे नहींहमारा ज्ञान स्थायी नहीं होगा. हिंदी रोज कोई न कोई शब्द आत्मसात करती है. जो हिंदी शब्दकोश हमारे पढ़ने के समय 400 पेज का होता थावह आज 800 पेज का हो गया हैलेकिन अंग्रेजी शब्दकोश में आज भी उतने ही पेज हैं. उद्घाटन सत्र में ही ‘मोदी: एम्पावर्स डेवलपमेंट‘ पुस्तक पर चर्चा के दौरान यह रेखांकित करने का प्रयास हुआ कि भारत कभी भी नौकरी करने वाला देश नहीं रहा. पुस्तक के लेखक प्रो एमके अग्रवाल ने कहा कि कृषि किसी भी तरह से पिछड़ेपन का कारण नहीं है. दैनिक जागरण की ज्ञानवृत्ति योजना के तहत लेखिका नाइश हसन के शोध पर आधारित पुस्तक ‘मुताह‘ और निर्मल कुमार पांडेय की पुस्तक ‘हिंदुत्व का राष्ट्रीयकरण‘ के कवर का अनावरण भी उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने किया. दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने कहा कि अभिव्यक्ति करने वालों को एक मंच पर इकट्ठा करके दैनिक जागरण ने एक अभियान चलाया है ‘हिंदी हैं हम‘. उसके अंतर्गत यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.

इस दिन के सत्रों की शुरुआत ‘प्रतिमाएंआस्था की शक्ति‘ विषय पर चर्चा से हुई तो मंच पर लेखक अमीश त्रिपाठी और बड़ी बहन भावना राय ने इतिहास की गहराई में झांकते हुए मूर्तिपूजकों पर आतताइयों के अत्याचार को बयां करते हुए अपनी संस्कृति की समृद्धता को सामने रखा. दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख आत्म प्रकाश मिश्र से संवाद में उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी यदि हमारी संस्कृति से विमुख हो रही हैतो इसका मुख्य कारण यही है कि हमने उन्हें इसके बारे में बताया नहीं. ‘आज की स्त्री और कविता‘ पर विमर्श में कवयित्री रश्मि भारद्वाजजोशना बैनर्जी व शैलजा पाठक से ओम निश्चल ने संवाद किया तो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता‘ के पीछे छिपे अंधकार पर भी प्रकाश डालने की कोशिश हुई. निष्कर्ष यह कि स्त्रियां चाहती हैं एक ऐसी धरतीजहां उनके स्वायत्त अस्तित्व को स्वीकार किया जाए. ‘राष्ट्रीय स्वत्व का संघर्ष‘ सत्र में आरएसएस की प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंदकुमार और दैनिक जागरण के राज्य संपादकउत्तर प्रदेश आशुतोष शुक्ल के परस्पर संवाद ने स्वत्व को पारिभाषित किया. निष्कर्ष था कि जब समाज के लोगों में स्वत्व भावना समान रूप से होगी तो राष्ट्र सशक्त होगा. ‘भारत का भविष्य और साहित्य‘ विषय समर्पित सत्र में साहित्यकार सुरेश ऋतुपर्ण और पवन अग्रवाल में हुई चर्चा का निष्कर्ष था कि साहित्य त्रिकालदर्शी होता हैलेकिन उसकी भूमिका ज्योतिषाचार्य की नहीं होती. वह किसी का भविष्य नहीं लिख सकता. लेकिनभविष्य के लिए सपने और प्रेरणा देता है. साहित्य ही भविष्य की सबसे ज्यादा चिंता करता है. इस सत्र के सूत्रधार वाराणसी के संपादक भारतीय बसंत कुमार रहे. अंतिम सत्र में लखनऊ का नाम दुनिया में रोशन करने वाले संगीतकार नौशाद के नाम पर महफिल सजी.