छत्रपति संभाजीनगर: “हमारे संविधान के निर्माता तपस्वी लोग थे, राष्ट्र भावना से ओत-प्रोत थे और आजादी प्राप्त करने के लिए लालायित थे. उनके मन में एक सपना था कि जब भारत गुलामी की जंजीर तोड़े, तो आजाद भारत को एक ऐसा संविधान मिले जो सभी की आकांक्षाओं को पूरा करे. करीब तीन साल अर्थात 2 साल, 11 महीने और कुछ दिन- उन्होंने तपस्या और लगन के साथ संविधान सभा में कार्य किया और 18 सभाएं की. तीन साल से भी कम समय में, वे 18 सत्रों में मिले. उनके सामने बड़ी चुनौतियां थीं, विवादित प्रश्न थे. उनका सामना कुछ सबसे विभाजनकारी और विवादास्पद मुद्दों से हुआ. उनका समाधान आसान नहीं था, पर वे तपस्वी लोग थे जो राष्ट्रभावना से ओत-प्रोत थे.” यह बात महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने डा बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय के 65वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कही. धनखड़ ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी टकराव की नहीं सोची, सामंजस्य का रास्ता अपनाया, संवाद का रास्ता अपनाया और भारतीय संस्कृति का जो मूल सिद्धांत हैं- ‘अनंतवाद’ की एक-दूसरे की बात सुनो, एक-दूसरे की बात समझो. इसमे अटूट विश्वास मत रखो कि आपका विचार ही सही विचार है, दूसरे का विचार भी सही हो सकता है. उन्होंने सभी विवादास्पद मुद्दों को बातचीत, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श के माध्यम से सुलझाया… उन्होंने हमारे समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि एक शानदार संविधान देते हुए उन्होंने कभी संविधान सभा को अपवित्र नहीं किया. प्रजातांत्रिक व्यवस्था की प्रतिष्ठा को कभी गिरने नहीं दिया. कभी कोई व्यवधान नहीं हुआ, शालीनता बनी रही. नारेबाजी नहीं हुई, बहिष्कार नहीं हुआ. वे अपने धर्म से, राष्ट्रधर्म से, कभी विचलित नहीं हुए. संविधान सभा की बहसें विचारशील चर्चा, उत्कृष्ट विचार-विमर्श, सार्थक संवाद और बहुत उच्च स्तर की रही थीं. इसमें कोई हस्तक्षेप, व्यवधान, हंगामा, नारेबाजी, तख्तियां दिखाना या बहिष्कार नहीं किया गया.

धनखड़ ने देश में अवैध प्रवास पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे भारत में लाखों ऐसे लोग हैं जिन्हें यहां रहने का कोई अधिकार नहीं है. वो यहां सिर्फ जीवनयापन ही नहीं कर रहे हैं, वो किसी न किसी रूप में, यहां अपनी आजीविका का सृजन कर रहे हैं. वे हमारे संसाधनों, हमारी शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्र, आवास क्षेत्र पर दावा कर रहे हैं और अब तो बात और आगे बढ़ गई है. वे हमारी चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहे हैं. हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंदर वह महत्वपूर्ण और निर्णायक कारक बनते जा रहे हैं. उन्होंने कहा, “प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म का पालन करने का अधिकार है, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म अपनाने का अधिकार है. परंतु जब धर्मांतरण भ्रमित करके, लोभ, लालच, प्रलोभन के माध्यम से होता है और इसका उद्देश्य होता है की राष्ट्र की जनसांख्यिकी बदलकर वर्चस्व हासिल करना. इतिहास साक्षी है, दुनिया के कुछ देशों में ऐसे उदाहरण हैं. आप मुझसे अधिक समझदार हैं, अधिक जानकारी रखते हैं, यह आप पता लगा सकते हैं. उन राष्ट्रों का मूल चरित्र ही मिटा दिया गया, वहां मौजूद बहुसंख्यक समुदाय गायब हो गया. हम इस जनसांख्यिकी आक्रमण की अनुमति नहीं दे सकते, जैविक जनसांख्यिकी वृद्धि स्वीकार्य है, लेकिन अगर यह नियंत्रण करने के भयावह डिजाइन के साथ हो रहा है तो विघटनकारी है, तो हमें इस पर ध्यान देना होगा. यह हमारे लिए विचारणीय विषय है. हमारे सदियों पुराने दर्शन को चुनौती दी जा रही है.” भारत के सदियों पुराने सभ्यतागत लोकाचार पर विचार करते हुए धनखड़ ने कहा, “स्वभाव से हम भौतिकवादी नहीं हैं, हम आध्यात्मिक हैं, हम धार्मिक हैं, हम नैतिक हैं. हम बाकी दुनिया के लिए आदर्श हैं और यह आदर्श हजारों सालों से चल रहा है. इसलिए कृपया पारिवारिक मूल्यों को अपनाएं, पारिवारिक मूल्यों को पोषित करें, अपने बड़ों का आदर करें, अपने माता-पिता का आदर करें और वह सांस्कृतिक ताकत आपको राष्ट्र के लिए योगदान करने की शक्ति देगी. देशभक्ति का बीज अपने आप खिल जाएगा. इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय के चांसलर सीपी राधाकृष्णन, राज्यसभा सांसद डा भागवत कराड, वाइस चांसलर प्रोफेसर विजय फुलारी और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.