नई दिल्ली: “कला से जुड़ाव हमें सृजनशील बनाता है. कलासत्य की खोज का मार्ग प्रदान करती है. कला के सानिध्य में हम अध्यात्म और अपने मूल से जुड़ते हैं. कलाजीवन को सार्थकता प्रदान करती है. भारतीय परंपरा में कला एवं साहित्य विहीन व्यक्ति को मानवता से विहीन माना जाता रहा है. इस प्रकारकला मानवता की पहचान है.” यह बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संगीत नाटक अकादमी के ‘अकादमी फेलोशिप‘ और ‘अकादमी पुरस्कार‘ अर्पण समारोह में कही. उन्होंने कहा कि आज के परिवेश में तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं. इसके अनेक कारण हैं. हम आध्यात्मिकता को छोड़ कर भौतिक सुख पर अधिक ध्यान दे रहे हैं. भौतिक सुख एवं धन के पीछे भागने से जीवन एकांगी हो जाता है. अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरने के बाद भी भारत की सभ्यता जीवंत बनी हुई है. इस जीवंतता का एक प्रमुख कारण है भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत. हमारी सांस्कृतिक विरासत में परफार्मिंग आर्ट्स का महत्वपूर्ण स्थान रहा है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि प्राचीन काल से ही कला-विधाओं को भारतीय संस्कृति में उच्च स्थान दिया गया है. भरत मुनि के नाट्य-शास्त्र को वेदों के समकक्ष रखते हुए उसे पंचम वेद कहा गया है. उनके नाट्य-शास्त्र में कला-विधा की जो व्यापकता एवं समग्रता मिलती है वह संसार के किसी अन्य ग्रंथ में दुर्लभ है. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कला के बारे में लिखा है कि कला में मनुष्य स्वयं को अभिव्यक्त करता है. मैं इस धारणा में विश्वास रखती हूं कि कला केवल कला के लिए नहीं होती है. कला के सामाजिक उद्देश्य भी होते हैं. इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब कलाकारों ने समाज कल्याण के लिए अपनी कला का प्रयोग किया. कलाकार अपनी कला के माध्यम से रूढ़ियों और पूर्वाग्रहों को चुनौती देते रहे हैं. वे अपनी कला से समाज को जगाते रहे हैं. हमारी कलाएं भारत की साफ्टपावर का सर्वोत्तम उदाहरण हैं. उन्होंने सम्मानित कलाकारों को बधाई देते हुए उम्मीद जताई कि विजेता संगीत एवं नाटक के विभिन्न रूपों और विधाओं के माध्यम से भारतीय कला-परंपरा को और भी अधिक समृद्ध बनाएंगे.