नई दिल्ली: आलोचककवि और गद्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी ने उपेंद्र कुमार की कविता यात्रा पर वरिष्ठ साहित्यकारों के लेखों की सूर्यनाथ सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ‘समय कोरी दीवार‘ का विमोचन किया. साहित्य अकादेमी के सभा कक्ष में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रो ओम प्रकाश सिंहलीलाधर मंडलोईडा बली सिंह और देव शंकर नवीन ने उपेंद्र कुमार और उनकी कविताओं पर अपने-अपने विचार रखे. उपेंद्र कुमार पर केंद्रित इस पुस्तक विमोचन का उद्देश्य अपेक्षित चर्चा से वंचित रह गये एक कवि की अहमियत को रेखांकित करना थाऔर इस सवाल का जवाब तलाशना था कि करीब साढ़े चार दशक से लिख रहे एक कविजिसके दर्जन भर से अधिक संग्रह हैंजो निरंतर कविता में नये प्रयोग कर रहा हैजिसने कविता के हर मिजाज से आंखें मिलाकर अपनी अलग राह बनाईवह उल्लेखनीय ढंग से हिंदी आलोचना की दृष्टि में कैसे नहीं चढ़ पाया. उपेंद्र कुमार का पहला संग्रह 1980 में आया था ‘बूढ़ी जड़ों का नवजात जंगल‘. जाहिर हैवे इसके पहले से लिखते रहे होंगे. संग्रह निकालने का उद्यम कोई रचनाकार तभी करता हैजब उसे भरोसा हो जाये कि उसकी रचना अब लोकवृत्त को देने लायक बन चली है. उपेंद्र कुमार की कविताओं को समझने का एक सूत्र उनका समय भी हो सकता है. कोई भी रचनाकार अपने समय के प्रभावों से बच नहीं सकता. उनकी शुरुआती कविताओं को खुरचकर उनका प्रभाव देखा भी जा सकता है.

उपेंद्र कुमार साठोत्तरी झंझावातों के दौर में आएजब साहित्य खुद अपना नया स्वरूप तलाश रहा था. तमाम विमर्श और सिद्धांत कसौटी पर कसे जा रहे थे. राजनीतिक प्रतिरोध का स्वर प्रखर था. कविता बयानबाजियों और नारों की शक्ल में उतरने लगी थी. यहां तक कि कविता ने खुद को अकविता हदें शुरू कर दिया था. फिर आपातकाल लगा. ऐसे दौर में उपेंद्र ने अपनी अलग पगडंडी बनाई. उपेंद्र कुमार ने कहा था कि कविता मेरे लिये वर्तमान व्यवस्था से लड़ने के लिये व्यवस्था अदत्त एक हथियार हैजिसका प्रयोग मैं व्यवस्था के कांटों भरे जंगल को काटने के लिये तलवार की तरह करता हूं. तो कभी व्यवस्था द्वारा सुरक्षित प्रासादों में रहने वालों पर गोलियां बरसाने के लिये मशीनगन की तरह…   ‘समय कोरी दीवार‘ पुस्तक में कुल सोलह लेख हैंजिनमें विजय बहादुर सिंहए अरविन्दाक्षनजानकी प्रसाद शर्मादेवशंकर नवीनज्योतिष जोशीरणजीत साहाभरत प्रसाद और निरंजन कुमार यादव जैसे कविता के मर्मज्ञ आलोचकों की टिप्पणियां हैंतो मदन कश्यपआनन्द कुमार सिंहदिविक रमेशराकेश रेणुरामप्रकाश कुशवाहाभरत प्रसाद और निशांत जैसे सुपरिचित कवियों की टिप्पणियां भी हैं. महेश दर्पण जैसे कथाकार के विचार भी इसमें शामिल हैं. पुस्तक के दूसरे हिस्से ‘बतकही के बीच‘ में साक्षात्कार के माध्यम से उपेन्द्र कुमार की कविता पर दूरदर्शन के कार्यक्रम में मदन कश्यप से बातचीत करते हुए नामवर सिंह और अतुल सिन्हा से बतकही करते हुए विश्वनाथ त्रिपाठी के विचार हैं. इसके अलावा ‘सूत्र सम्मतियां‘ खंड में अज्ञेयभवानी प्रसाद मिश्र से लेकर अमृता प्रीतमकमलेश्वरराजेन्द्र यादव आदि अनेक वरिष्ठ रचनाकारों की छोटी-छोटी कुंजी नुमा टिप्पणियां हैंजिनसे उपेन्द्र कुमार की कविता का मर्म खुलता है. उनके विविध आयाम सामने आते हैं.