लखनऊ: स्थानीय एपी सेन सभागार में लखनऊ विश्वविद्यालय और विश्व संवाद केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में ‘देवर्षि नारद जी की वेदसम्मत नीतियां और वर्तमान भारतीय पत्रकारिता’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ. संगोष्ठी की प्रस्तावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अवध प्रांत के प्रचार प्रमुख डा अशोक दुबे ने रखी. उन्होंने कहा कि देवर्षि नारद को संचार के विविध सोपानों के माध्यम से हम जानते हैं. देवर्षि नारद ने हमेशा लोकमंगल की पत्रकारिता की. डा दुबे ने बताया कि पत्रकारिता शब्द भारत का नहीं है बल्कि भारत में तो भौतिक समृद्धि के साथ-साथ आध्यात्मिकता अधिष्ठान पर भी बल दिया गया है. हमारे यहां सामाजिक कार्यों में कार्य करते हुए विशेष पूजन होता है. पत्रकारिता के क्षेत्र में देवर्षि नारद हमारी संस्कृति में पूजनीय हैं. वे हजारों वर्षों के इतिहास काल में हमारे यहां विभिन्न संघर्षों के साथ अपने विचारों पर अडिग रहे. पत्रकारिता जगत में समाचार का विशेष योगदान है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के प्रचार प्रमुख और मुख्य वक्ता सुभाष ने कहा कि देवर्षि नारद भगवान के समान हैं, विद्वान हैं और संचारक हैं. पत्रकारिता का मूल तत्व जिज्ञासा है. जिज्ञासा होगी तो जानकारी प्राप्त हो सकती है. नारद संवाद शैली में पारंगत होने के साथ-साथ समाज कल्याण के लिए आदर्श हैं. पत्रकारिता के माध्यम से जनकल्याण की सूचनाओं को सामने लाना ही आदर्श पत्रकारिता है. सत्य की आराधना करने से जन कल्याण संभव है. सत्य के लिए भारत में कहा भी जाता है कि सत्यमेव जयते. देवर्षि नारद को मानने का अर्थ है सत्य का आचरण, निष्ठा और आग्रह करना. भारत के पत्रकारों ने सत्याग्रही बनकर अपनी लेखनी से समाज को जागरण का कार्य किया. जिससे भारत के सफल लोकतंत्र की स्थापना हुई. सुभाष ने कहा कि हमारे यहां चिंतन व्यवहारिक होना चाहिए. देवर्षि नारद का शील ही संदेश है. नारद केवल संचारक ही नहीं उद्धारक भी हैं. नारद जी का जीवन लोक कल्याण के लिए है. बहुजन समाज के लिए है. नारद जी चरवैति- चरवैति के द्योतक हैं. सुंदरता के साथ दिव्यता होनी चाहिए जिसके बाद ही पूर्णता संभव है. हमें पत्रकारिता की पूर्णता तक जाना चाहिए. समन्वय का आधार ही संगीत है कहा भी गया है मिले स्वर मेरा तुम्हारा तो स्वर बने हमारा. यह सभी समन्वय का रूप है. पत्रकारिता एक दीपक के समान है जिसका कार्य अंततः जलते रहना है, चलते रहना है.
राष्ट्रीय संगोष्ठी के सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने कहा कि आज की पत्रकारिता में द्वंद है. पहले की पत्रकारिता मिशन थी जबकि आज की पत्रकारिता अधर में ही लटकी हुई है. देवर्षि नारद की संचार शैली आज की संचार शैली से अलग है. आज की पत्रकारिता में समन्वय और संतुलन बनाए रखना है. आज लगभग नकारात्मक खबरें ही लीड खबर बनती है. दुनिया में भी लीड खबर की मूल अवधारणा में नकारात्मकता है. भारत के मीडिया को इस नैरेटिव से बाहर आने की आवश्यकता है. मानव सभ्यता का विकास विविधता में होता है. हमें देवर्षि नारद के सत्यान्वेषण की ओर ले जाना चाहिए. संगोष्ठी के अन्तिम सत्र में लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष नरेंद्र भदौरिया ने कहा कि भारत के दर्शन और संस्कृति को पाश्चात्य देशों द्वारा हमेशा नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया. हमें अपनी संस्कृति पर संशय नहीं करना है. आज की पत्रकारिता ने सोशल मीडिया के सामने घुटने टेक दिए हैं. भदौरिया ने कहा की भारत का विज्ञान सबसे उत्तम है. हमें पाश्चत्य मीडिया के सामने नहीं झुकना है. हमें साहस से दिशा मोड़नी है. राष्ट्रीय संगोष्ठी के इस कार्यक्रम का आभार अशोक सिन्हा ने किया. संचालन डा सौरभ मालवीय ने किया. कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अवध के सह प्रचार प्रमुख डा शचीन्द्रनाथ, डा लोकनाथ, प्रांत सह संपर्क प्रमुख डाक्टर हरनाम सिंह, प्रांत धर्म जागरण प्रमुख सुरेंद्र, डा मनीष कुमार, भारत सिंह, बृजनंदन राजू, डा संतोष आदि के साथ बड़ी संख्या में पत्रकार और विभिन्न संस्थाओं के पत्रकारिता विद्यार्थी उपस्थित रहे.