नई दिल्ली: “गांधी के युग वाले गांव अब वैसे ही नहीं रह गए हैं. बल्कि गांव भी शहरों जैसे सम्पन्न हो चुके हैं. सड़कों का जाल गांवों तक फैल चुका है. अब गांव विकास की नई राह पर हैं. ऐसे में ग्राम शिल्पी का स्वप्न साकार होता दिखाई देता है.” यह बात इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने  वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता की नवीनतम पुस्तक ‘गांव के राष्ट्र शिल्पी’ के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य वक्ता कही. उन्होंने कहा कि तकनीक के बदलते युग ने गांवों की परिभाषा भी बदली है, इसलिए राष्ट्र शिल्पी की भूमिका भी बदलेगी. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्राध्यापक, अर्थशास्त्री प्रो अरुण कुमार ने कहा कि आज हम जिस आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं, वह गांवों से ही निर्मित हो सकेगा. निर्माण की इस प्रक्रिया में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम शिल्पी कार्यक्रम और ग्राम शिल्पी दोनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, जिन्हें इस पुस्तक ने फिर से केंद्र में ला दिया है. वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पांडेय ने कहा कि यह केवल गांधी का स्वप्न ही हो सकता था कि गुजरात विद्यापीठ में पढ़ रहा कोई युवा अपनी पढ़ाई के दौरान ही अपनी इच्छा से गांव में रहने का निर्णय ले और पूरा जीवन उस गांव के उत्थान में लगाए. उसके इस प्रयास में समाज मदद करे और विद्यापीठ साथ रहे. उन्होंने कहा कि अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद ग्राम शिल्पी एक हद तक लोकशक्ति को जगाने में कामयाब रहे हैं. इससे पता चलता है कि सौ साल बाद भी गांधी की आत्मा गुजरात विद्यापीठ में जीवंत है और वहां आने वालों को प्रभावित करती है.

प्रभाष परम्परा न्यास और मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशन्स की ओर से विवेकानंद सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में  ग्रामशिल्पी राधा कृष्ण ने अपने अनुभव साझा किए कि इस तरह से अहमदाबाद के एक व्यावसायी परिवार में पैदा होकर भी करियर बनाने के उनके स्वप्न को गुजरात विद्यापीठ ने बदल डाला. उन्होंने आगरा जिले के राटौटी गांव में ग्रामशिल्पी के रूप में अपने अनुभव भी साझा किया और सामाजिक कार्यों का उल्लेख किया. डा अशोक कुमार गदिया ने मेवाड़ यूनिवर्सिटी और मेवाड़ गर्ल्स कालेज में ग्रामीण युवाओं व युवतियों के लिए किये जा रहे रोजगारपरक एवं शिक्षाप्रद कार्यों को ग्रामशिल्प का अनूठा उदाहरण बताया. साथ ही गांवों से शहरी नौजवानों को जोड़ने की बात कही. उन्होंने कहा कि नौजवानों को साथ लेकर गांवों में विकास कार्यक्रम चलाने की आज महती आवश्यकता है. गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलनायक प्रोफेसर राजेन्द्र खिमाणी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि पढ़े-लिखे युवा गांवों में जाएं और ग्रामशिल्पी बनें, अपने जीवन को सादगीपूर्ण ढंग से जीएं, महात्मा के इस स्वप्न को उन्होंने धरातल पर लागू करने की कोशिश की. उन्होंने लोकभारती द्वारा संचालित ग्राम बंधु कार्यक्रम से भी नौजवानों को जुड़ने का आग्रह किया. उन्होंने नीलम गुप्ता की पुस्तक में ग्राम शिल्पियों के मुद्दे उठाने की सराहना की. लेखिका और पत्रकार नीलम गुप्ता ने बताया कि पुस्तक में महात्मा गांधी के स्वप्न, गुजरात विद्यापीठ के ग्राम शिल्पियों के कार्यों का विस्तृत और सूक्ष्म आकलन किया गया है. इसमें बताया गया है कि कैसे नौजवान लोकशक्ति को जगाकर गांवों को आत्मनिर्भरता एवं स्वराज की ओर ले जा सकते हैं. समारोह में सेंटर फार पोलिसी स्टडीज के निदेशक जितेंद्र बजाज समेत कई वरिष्ठ पत्रकार और मेवाड़ परिवार के सदस्य एवं विद्यार्थी मौजूद थे. प्रभाष परंपरा न्यास की ओर से उषा जोशी भी उपस्थित रही. डा अलका अग्रवाल ने भी आभार व्यक्त किया. संचालन अमित पाराशर ने किया.