नई दिल्लीः ‘संस्कृत साहित्य की पुरोधा वेद कुमारी घई के निधन से दु:खी हूं. उनके अपार योगदान ने हमारी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया. उनकी रचनाएं विद्वानों को सदा प्रेरित करती रहेंगी. उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं. ओम शांति:’, यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साहित्यकार, शिक्षाविद और समाज सेविका प्रोफेसर वेद कुमारी घई को इन शब्दों में श्रद्धांजलि दी. ‘नीलमत पुराण’ का अंग्रेजी में अनुवाद कर दुनिया भर में पहुंचाने वालीं घई का निधन 92 साल की उम्र में हुआ. 16 दिसंबर, 1931 को जम्मू में पैदा ही घई ने अपनी स्कूली शिक्षा जम्मू से पूरी की थी. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत में और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में स्नातकोत्तर और शोध की उपाधि हासिल की थी.
हिंदी, संस्कृत, डोगरी और अंग्रेजी के बीच सेतु का काम करने वाली घई की डोगरी भाषा पर विशेष पकड़ थी. उन्होंने डेनमार्क में डोगरी की ध्वन्यात्मकता, उसके स्वर विज्ञान पर भी काम किया था. 1953 से शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी प्रो वेद घई जम्मू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग की प्रमुख और संकायाध्यक्ष थीं. वे वह हिमाचाल, पंजाब, काहिविवि के साथ भी जुड़ी रहीं. साहित्य और समाजसेवा के लिए वे जम्मू कश्मीर की सरकार के अलावा केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित थीं. यही वजह है कि उनके निधन पर पूरे देश विशेषकर जम्मू-कश्मीर के शैक्षिक क्षेत्र में शोक की लहर व्याप्त हो गई. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शोक संदेश में कहा कि प्रो वेद कुमारी घई के निधन से दुखी हैं. वह एक महान संस्कृत विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके समृद्ध योगदान दिया. इसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. परिवार के प्रति उनकी गहरी संवेदना है. डोगरी संस्था ने शोक सभा आयोजित की. संस्था के अध्यक्ष ललित मंगोत्रा ने कहा कि प्रो. घई के निधन से साहित्य जगत विशेषकर संस्कृत साहित्य में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे भरा नहीं जा सकता. संस्था के महामंत्री राजेश्वर सिंह ‘राजू’ ने कहा कि वह अपने कार्यों के प्रति इतनी समर्पित थीं कि वह कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं. संस्कृत के लिए उनकी सेवाओं को लंबे समय तक याद रखा जाएगा.