नई दिल्ली: “भारत ऐतिहासिक रूप से शांति की भूमि रहा है और एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक खिलाड़ी है, जिसकी सबसे बड़ी महत्त्वाकांक्षा एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण वातावरण का निर्माण करना है, ताकि हमारे लोग फलें-फूलें, हमारा राष्ट्र समृद्ध हो और जिससे मानवता को लाभ हो.” उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात दो दिवसीय चाणक्य रक्षा संवाद का आरंभ करते हुए कही. स्थानीय मानेकशा सेंटर में भूमि युद्ध अध्ययन केंद्र के सहयोग से भारतीय सेना द्वारा संचालित छह अलग-अलग सत्रों में विभाजित यह कार्यक्रम ‘भारत और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सेवा- व्यापक सुरक्षा के लिए सहयोग‘ विषय पर केंद्रित था. प्राचीन रणनीतिकार चाणक्य की दूरदर्शिता से प्रेरित इस संवाद में दक्षिण एशियाई और हिन्द-प्रशांत सुरक्षा गतिशीलता, क्षेत्र में सहयोगात्मक सुरक्षा के लिए एक रूपरेखा, उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन पर विशेष बल देने के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों, रक्षा और सुरक्षा, भारतीय रक्षा उद्योग की सहयोगात्मक क्षमता बढ़ाने के स्वरूप और भारत के लिए व्यापक प्रतिरोध हासिल करने के विकल्पों पर महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई. उपराष्ट्रपति ने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम‘ हमारे उपनिषदों का सार है, जो ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य‘ की अवधारणा के साथ हमारी जीवन शैली और हमारे वैश्विक दृष्टिकोण दोनों का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि जब दुनिया कुछ हद तक खतरे में है, शायद बारूद के ढेर पर बैठी हुई है, कई कठिन परिस्थितियों के साथ, वैश्विक सुरक्षा और शांति के लिए समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए एक विचार मंच की संकल्पना वास्तव में विचारशील और सामयिक है. भारत हजारों वर्षों के सभ्यतागत लोकाचार से अद्वितीय रूप से संपन्न है. जबकि दुनिया भारत को महान आध्यात्मिक विचारकों की भूमि के रूप में स्वीकार करती है, यह कुछ बेहतरीन रणनीतिक दिमागों और कठोर यथार्थवादियों की ‘कर्मभूमि‘ भी रही है.
उपराष्ट्रपति ने आचार्य चाणक्य, जिनके नाम पर इस संवाद का नाम रखा गया है, को एक ऐसे कल्पनाशील रणनीतिक विचारक और शासन कला के कुशल प्रतिपादक बताया, जो अपनी टिप्पणियों और सलाह में हमेशा दूरदर्शी रहते थे. उनके विचार थे, ‘शस्त्र नहीं उठाओगे तो अपना राष्ट्र खो दोगे और शास्त्र नहीं पढ़ोगे तो अपनी संस्कृति खो दोगे. कुछ इसी तरह के विचार एक और प्रतिभाशाली भारतीय दिमाग और वैश्विक आइकन स्वामी विवेकानंद के भी थे. उन्होंने कहा था कि दुनिया एक व्यायामशाला है, जहां राष्ट्र खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं. इसका मतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में ताकत मायने रखती है. उन्होंने वह सब कुछ समाहित कर लिया था, जो प्रासंगिक था. उनके कहने का मतलब यह था कि ताकत मायने रखती है और प्रासंगिक बने रहने और एक उचित वैश्विक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए आपके पास ताकत होनी चाहिए. किसी राष्ट्र की ताकत रक्षा और डिटरेंट है, जो सबसे ज्यादा प्रभावशाली होती है. राष्ट्र के साफ्ट पावर और आर्थिक शक्ति से लाभ उठाना, सुरक्षा वातावरण को मजबूत करने के पहलू बन गए हैं. आज का भारत, ‘वसुधैव कुटुंबकम‘ के सिद्धांत को संजोते और उसका पालन करते हुए ऐसी श्रेष्ठ आकांक्षाओं को शक्ति प्रदान करने का समर्थन करता है. इस दौरान थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार, वायु सेना उपप्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह, सेंटर फार लैंड वारफेयर स्टडीज के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीएस राजेश्वर (सेवानिवृत्त), थल सेनाध्यक्ष उप-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचिन्द्र कुमार, पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीएन शर्मा, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एस लांबा, भारत और विदेश से आए प्रतिष्ठित प्रतिनिधि, अतिथियों, रक्षा सेवाओं के अधिकारी, रक्षा विशेषज्ञ आदि उपस्थित थे.