मांडू: नायाब अफ़सानों के क़स्बे मांडू की गुलाबी गुनगुनी ठंड में ‘क’ कहानी का आयोजन हुआ. इस आयोजन की सफलता से उत्साहित आयोजक मंडल ने निर्णय लिया कि आने वाले समय में अमरकंटक, खजुराहो, जयपुर और अहमदाबाद में चार बड़े तीन दिवसीय आयोजन होंगे. शिवना प्रकाशन के शहरयार ने इस आशय की घोषणा की कि इस आयोजन में शामिल प्रतिभागियों की कहानियों का साझा संग्रह फरवरी में विश्व पुस्तक मेले में प्रकाशित होगा. मांडू कार्यशाला में लगातार कहानियों पर चर्चाओं, गतिविधियों के साथ कथा पाठ के दौर चलते रहे. प्रतिभागी लाइट एंड साउंड शो के ज़रिये मांडूगढ़ के दस हजार साल पुराने इतिहास और उससे झांकती कई अमर कथाओं से भी रूबरू हुए. जहाज महल और रूपमती महल के प्रांगण में कहानियों का पाठ हुआ. प्रतिभागियों की जिज्ञासा का समाधान भारत भारती सम्मान और पद्मश्री से सम्मानित डा उषा किरण खान, वरिष्ठ आलोचक प्रो नलिन रंजन सिंह तथा प्रतिष्ठित कथाकार पंकज सुबीर ने किया.

खान ने कहानी ‘अनुत्तीर्ण’ तथा पंकज सुबीर ने ‘जोया देसाई कॉटेज मांडवगढ़’ का पाठ किया. मनीष शर्मा ने खान की कहानी ‘दूबधान’ का पाठ किया. सुनील चतुर्वेदी ने आभार व्यक्त किया.

कार्यक्रम में सोनल शर्मा, अमेय कान्त, मनीष शर्मा, रश्मि शर्मा, बिंदु तिवारी, किसलय पंचोली, सीमा व्यास, कविता नागर, सुमन कुमावत, शिरीन भावसार, छाया गोयल, मीनाक्षी स्वामी आदि ने अपनी कहानियों का पाठ किया, जिन पर नलिन रंजन सिंह ने टिप्पणी की. आयोजन की कमान मनीष शर्मा अमेय कान्त, हिमांशु कुमावत, शिरीन भावसार, शक्ति वैद्य, उमेश अग्रवाल तथा मनोज डोड ने संभाली. उषा किरण खान और पंकज सुबीर ने अपनी रचना प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए बताया कि उनके भीतर कहानी का बीज कहां से आता है और वह कैसे एक मुकम्मल कहानी में बदलता है. नलिन ने कहानी के सतत विकास क्रम के साथ भाषा, शैली और प्रयोगों पर विस्तार से अपनी बात रखी. लखनऊ से डा देविका शुक्ला तथा प्रो प्रीति मिश्रा भी उपस्थित थीं. कथा लेखन की चुनौतियों पर विस्तार से कई सत्रों में शिद्दत से चर्चा हुई.