रांची: आदिवासी साहित्य सिर्फ हिंसा झेल रहे प्रतिरोधी जीवन का बयान नहीं हैबल्कि यह पुरखों के जीवनदर्शन से प्रेरित सामूहिक स्मृतियों और सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति है. आदिवासी लोग केवल दुख और संघर्ष को जीवन का पर्याय नहीं मानते. वे शांतिप्रियसहजीवी दुनिया के पक्षधर हैं और अपने साहित्य में इसी को रचनात्मक काल्पनिक कौशल के साथ प्रस्तुत करते हैं. ये बातें नागालैंड से आईं आओ-नागा साहित्यकार और प्रकाशक लानुसांगला त्जुदिर ने कहीं. वे रांची के प्रेस क्लब में आयोजित दूसरे जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं. इस अवसर पर केरल से आए आदिवासी कवि और कलाकार सुकुमारन चालीगाथा ने बीज वक्तव्य दिया. इस दौरान बहुभाषाई कविता और गीत सम्मेलन भी हुआजिसमें 24 झारखंडी कवियों और गीतकारों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में गीत गाए.

फाउंडेशन की मुख्य कार्यकारी वंदना टेटे के मुताबिक 2023 का अवार्ड अरुणाचल की डा ताबिङ तुनुङ के कविता संग्रह ‘गोम्पी गोमुक‘, महाराष्ट्र के संतोष पावरा के काव्य संकलन ‘हेम्टू‘ और पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार की डा पूजा प्रभा एक्का को अनूदित हिंदी कथा संग्रह ‘सोमरा का दिसुम‘ के लिए दिया गया. समारोह में बहुभाषाई आदिवासी-देशज दुरङ परफारमेंस में स्वर्णलता आइंदसनगी समदअगुस्तुस ने मुण्डूतारकेलेंग कुल्लूजुएल लकड़ा ने खड़ियासीता उरांवसुखदेव उरांव ने कुड़ुखडुमनी माई मुर्मूगणेश मुर्मूशिवनारायण हेम्बरोमलखिया टुडू ने संतालीहलधर अहीरअपराजिता मेहता ने पंचपरगनियासादरी  ने कार्मेला एक्काडा वृंदावन महतो ने कुड़मालिजेठा असुररेशमी असुर ने असुरअणिमा तेलरासुरेन्द्र बिरजिया ने बिरजियादीपक कुमार दीपक ने खोरठासाधना समद चाकी और जगन्नाथ हांसदा ने ‘हो‘ की प्रस्तुति दी. इसका समारोह का आयोजन झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा और टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन ने किया था.