नई दिल्ली: साहित्योत्सव में चौथे दिन तीस सत्रों में बीसवीं सदी का भक्ति साहित्य, भारत में नाट्य लेखन, सिनेमा और साहित्य एवं भारतीय भाषाओं में बाल साहित्य जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चाएं हुईं. इसी के साथ बहुभाषी कहानी और कविता पाठ का भी आयोजन हुआ. पुस्तकों से रील तक तथा रील से पुस्तकों तक, सिनेमा और साहित्य की अंतरक्रिया जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर प्रख्यात सिने समालोचक अरुण खोपकर की अध्यक्षता में अजित राय, अतुल तिवारी, मुर्तजा अली, निरुपमा कोतरु, रत्नोत्तमा सेनगुप्ता तथा त्रिपुरारी शरण ने अपने-अपने विचार रखे. अजित राय ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि अच्छे साहित्य पर अच्छी ही फिल्म बने या फिर खराब साहित्य पर खराब फिल्म ही बने. सिनेमा एक दूसरी विधा है इसलिए साहित्य को उसके अनुसार ढलने की जरूरत है. अतुल तिवारी ने कहा कि सिनेमा एक नई विधा है, लेकिन उसने अपनी ताकत परंपरा से भी प्राप्त की है. साहित्य को सिनेमा की भाषा में ढलना होगा तभी दोनों के संबंध एक दूसरे के लिए पूरक होंगे. मुर्तजा अली ने कई विदेशी फिल्मों के साहित्यकरण के उदाहरण देते हुए कहा कि अमूमन लेखक और निर्देशक के बीच सहमति और असहमति की स्थिति हमेशा बनी रहती है.
निरुपमा कोतरु ने श्याम बेनेगल का उदाहरण देते हुए कहा कि साहित्यिक कृति को सम्मानजनक से फिल्माने के लिए अच्छे निर्देशक की जरूरत होती है. रत्नोत्तमा सेन गुप्ता ने कहा कि सिनेमा जहां डायलाग का माध्यम है, वहीं साहित्य विस्तार का. जिस तरह से थियेटर को साहित्य में समाहित होने के लिए लंबा समय लगा, वैसे ही सिनेमा को साहित्य का हिस्सा बनने के लिए अभी समय लगेगा. त्रिपुरारी शरण ने कहा कि पापुलर साहित्य और आर्ट का झगड़ा हमेशा चलता रहा है. लेकिन यह एक दूसरे के पूरक हैं और हमेशा मिलकर काम करते रहेंगे. परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे अरुण खोपकर ने कहा कि एक नई विधा के रूप में सिनेमा ने बहुत जल्दी ही साहित्य सहित अन्य विधाओं को भी अपने अंदर बहुत जल्दी समाहित किया है. सिनेमा जहां अन्य विधाओं से ले रहा है तो वहीं अन्य विधाओं को कुछ दे भी रहा है. फिल्मों ने एक नई भाषा को भी जन्म दिया है. स्वातंत्र्योत्तर भारतीय साहित्य शीर्षक से आरंभ हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात अंग्रेजी एवं हिंदी विद्वान हरीश त्रिवेदी ने प्रस्तुत किया और बीज वक्तव्य प्रख्यात हिंदी कवि एवं आलोचक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने दिया. कार्यक्रम में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक एवं उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा भी शामिल थी. इस दिन आदिवासी लेखक और उत्तरी-पूर्वी लेखक सम्मिलन, आमने-सामने कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ. सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत जैसलमेर से पधारे महेशा राम एवं साथियों ने संत वाणी गायन प्रस्तुत किया.