कौसानी: उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ और बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बाल साहित्य संगोष्ठी में कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई. अनासक्ति आश्रम में आयोजित इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि बाल साहित्य लिखा तो बहुत जा रहा है, लेकिन उसे बच्चों तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण कार्य है. इसी तरह जिस तेजी से बच्चों की सोच में बदलाव हो रहा है, उसमें बच्चों के लिए लिखते समय बाल मनोविज्ञान को समझना भी बहुत जरूरी है. बच्चे कोरी कल्पना की बजाय यथार्थ में जीना चाहते हैं. संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि आज के बच्चे स्मार्ट फोन की दुनिया में जी रहे हैं. माता-पिता और अभिभावक बच्चों को बचपन से ही मोबाइल फोन पकड़ा रहे हैं. बच्चों को दोष दिया जा रहा है. वह पुस्तकें नहीं पढ़ रहे हैं. साहित्यकार, शिक्षक-अभिभावक भी किताबों से दूर होते जा रहे हैं. पठन-पाठन की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए पहल करनी होगी.
संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ बाल साहित्यकार रमेश चंद्र पंत ने की. दून साइंस फोरम देहरादून के विजय भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद बडौनी, भारत ज्ञान विज्ञान समिति के प्रांतीय महासचिव एसएस रावत, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ डीएस रावत, केपीएस अधिकारी, देवेंद्र ओली, मोहन लाल टम्टा आदि ने बाल साहित्य के विभिन्न पक्षों पर अपनी बात रखी. संचालन डा. मंजू पांडे ‘उदिता’ और विमला जोशी ‘विभा’ ने किया. संगोष्ठी में एडवोकेट कृष्ण सिंह बिष्ट, उदय किरौला, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ अमिता दुबे, समेत 67 साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया. साहित्यकारों को प्रतीक चिह्न भेंट किया गया.