लखनऊ: श्रीलाल शुक्ल पर केंद्रित एक परिचर्चा में युवा कवि नूर आलम ने श्रीलाल शुक्ल की चर्चित कहानी ‘एक चोर की कहानी‘ का पाठ किया. शुक्ल के पौत्र उत्कर्ष शुक्ल ने श्रीलाल शुक्ल के निजी जीवन की बहुत सारी यादें और किस्से साझा किए. वरिष्ठ कथाकार और ‘तद्भव‘ के संपादक अखिलेश ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल अपने उपन्यास ‘राग दरबारी‘ में गांव को लेकर एक मोहक और रोमानी दृष्टिकोण को पूरी तरह से उलट देते हैं. वे अपने लिखने के तरीके को सतत रूप से तोड़ते रहते थे. अपने हर उपन्यास में उन्होंने एक नई भाषा और यथार्थ को अर्जित किया. वे लिखने को लेखक के लिए मुक्ति की तरह देखते थे. उनका कहना था कि अपनी भाषा या यथार्थ को रिपीट करना लेखक को बंधन में बांध देती है. व्यंग्य को भी वे विधा की बजाय शैली मानते थे जिसे किसी भी विधा में शामिल किया जा सकता था. नेहरू युग के रूमान को, विकास के उस मॉडल की दरारों की बेहद तीखी मीमांसा उन्होंने ‘राग दरबारी‘ में प्रस्तुत की. अखिलेश ने कहा कि शुक्ल के व्यक्तित्व में परंपरा और आधुनिकता का एक अद्भुत सहमेल था. एक तरफ वे दुनिया भर के नए से नए साहित्य से परिचित रहते थे तो दूसरी तरह उन्हें कालिदास का लगभग समूचा साहित्य कंठस्थ था. वीरेंद्र यादव और रमेश दीक्षित ने राजकमल प्रकाशन के प्रति और इन किताबों के संपादकों के प्रति आभार व्यक्त किया कि वे इस बेहद जरूरी काम को पूरी जिम्मेदारी से कर रहे हैं.
इसी कार्यक्रम के दौरान ‘लखनऊ की मोहल्लेदारी‘ विषय पर एक सत्र में विख्यात युवा दास्तानगो हिमांशु वाजपेई से पत्रकार, संपादक आलोक पराड़कर ने बातचीत की. हिमांशु ने कहा कि लखनऊ एक विचार का नाम है. लखनवी वो नहीं होता है जो लखनऊ में रहता है बल्कि लखनवी वो है जिसके अंदर लखनऊ रहता है. आज जिसे हम पुराना लखनऊ कहते हैं वो मोहल्लों का ही लखनऊ था. इन मोहल्लों के अंदर मुहब्बत और तहजीब बसती थी. यहीं से इन मोहल्लों की तमाम खूबियां आती थीं. ये कोई एक दिन में नहीं हुआ था. लखनवी तहजीब का हिस्सा होने के बावजूद हर मोहल्ले की अपनी अलग पहचान रही. लोग जबान सुनकर, पान लगाने का हुनर या तरीका देखकर, या दास्तान सुनते हुए जान जाते थे कि सामने वाला लखनऊ के किस मुहल्ले से है. हिमांशु ने आगे कहा कि पुराने लखनऊ या पुरानी तहजीब की बात करने का ये मतलब नहीं है कि हम नएपन के विरोधी हैं. लेकिन ये जो खूबियां हैं उन्हें बनाने में न जाने कितने लोगों ने अपनी जिंदगियां कुर्बान की हैं तब जाकर ये असर पैदा हुआ है.