मुंगेर: मुंगेर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में ‘साहित्य की प्रयोजनीयता‘ विषय पर एकल व्याख्यान का आयोजन हुआ. जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में रांची विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा जंग बहादुर पांडेय ने भाग लिया. डा पांडेय ने साहित्य की प्रयोजनीयता पर चर्चा करते हुए उसके सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्षों को विस्तार से रखा. उन्होंने कहा कि काव्य-शास्त्र में साहित्य के प्रयोजन के बारे में जो चर्चा की गई है, उससे इतर भी साहित्य के कुछ प्रायोजन हैं. साहित्य में जो लिखित है वह साहित्य का सैद्धांतिक पक्ष है और वह हमें जानकारी प्रदान करता है. जब हम किसी साहित्यिक जानकारी को अपने जीवन में उतारते हैं. अपने व्यवहार में उतारते हैं, तो वह समझदारी का रूप ले लेता है. इसीलिए साहित्य की प्रयोजनीयता मूलत: साहित्यिक जानकारी से व्यावहारिक समझदारी तक की यात्रा से ही जुड़ी है.
याद रहे कि साहित्य की प्रयोजनीयता के विषय में पाश्चात्य विद्वानों ने अनेक प्रवादों की सृष्टि की है. पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार साहित्य के मूल में मनुष्य की वे ही भावनाएं और इच्छाएं हैं जिन्हें वह समाज के नियमों अथवा अन्य प्रतिबंध के कारण वास्तविक जीवन में चरितार्थ नहीं कर सकता. इस एकल व्याख्यान में आमंत्रित वक्ता का स्वागत जेआरएस कालेज के प्रभारी प्राचार्य डा देवराज सुमन, विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर, अंग्रेजी विभाग, विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर, इतिहास विभाग, उर्दू विभाग के वरीय प्राध्यापक शाहिद रजा, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डा रोशन रवि तथा डा अवनीश चंद्र पांडेय ने संयुक्त रूप से तुलसी का पौधा देकर किया. स्नातकोत्तर, हिंदी विभाग के सह प्राध्यापक डा हरिश्चंद्र शाही के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ.